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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग
विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण केवलज्ञानी जिन .७४ १ ५३ ठा ३ उ ४ सू २२० केवलदर्शन १६६ १ १५८ ठा ४सू ३६५,कर्म भा ४गा १२ केवलदर्शनअनाकारोपयोग७८६४ २६६ पन्न प. २६ सू० ३१२ केवलि मरण ८७६ ५ ३८४ सम १७,प्रव द्वा १५७गा.१००७ केवलि लब्धि ६५४ ६ २६३ प्रव द्वा २७० गा १४६३ केवलि समुद्घात ५४८ २ २६० पन्न.प. ३६सू ३३१, ठा.७ उ
३स ५८६, द्रव्य लोस ३ पृ.
१२५,प्रव द्वा २३१गा १३११ केवली के दस अनुत्तर ६५५ ३ २२३ ठा १० उ ३ सू७६३ केवली के परिषह सहन ३३२ १ ३४२ ठा० ५ उ० १ सू० ४०६ करने के पांच स्थान केवली के पांच अनुत्तर ३७६ १ ३६१ ठा० ५ उ० १ सू० ४१० केवली जानने के ७ स्थान ५२४ २ २६१ ठा० ७ उ० ३ सू० ५५ • केवलीमरूपितधर्ममांगलिक१२६१ ६५ प्राव ह भ ४ पृ. ५६६ । लोकोत्तम और शरणरूप है केसवाणिज्जे कर्मादान ८६० ५ १४५ उपा.अ १ सू.७, भश ८ उ..
सू ३३०,पाव.ह भ ६पृ८२८ कोकणदारक का दृष्टान्त ७८० ४ २४८ पाव. ह गा १३४, बृ नि भाव अननुयोग पर
गा०१७२ पीठिका कोणिक की विशाला ११५६ ११७ उत्त (क) म १ गा ३ टी.,निर नगरीजीतने की कथा
म.१,न.सू.२७ गा.७४,पाव
ह नि गा. ६५१ कोष्ठक बुद्धि लब्धि ६५४ ६ २६६ प्रवद्वा २७० गा १४६४ १ कौकुचिक ४४४ २४७ ठा ६२ ३सू ५२९, (जी)उ ६
१ कुत्सित चेष्टा कर सयम की घात करने वाला साधु ।