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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चित्तसमाधि के दस स्थान ६७४ ३ २६२ सम १०, दशा द. ५ चिन्तन के सात फल ५०७ २ २३५ था प्र. गा.३६३ चिन्ता स्वम दर्शन ४२११४४४ भश १६ उ ६ सू ५७७ चिलाती.पुत्र की सम्यक्त्व-८२१ ४ ४३४ नवपद गा १४टी सम्यक्त्वाप्राप्ति की कथा
धिकार, ज्ञा अ १८ चिह्न छः नकारे के ४६१ २ १०२ उत्तम १८गा ४१नमुचिकुमार
की कथा (हस्तलिखित) चुलनीपिता के व्रतभंग का६८५ ३ ३१३ उपा अ० ३ टी कारण रक्षा-परिणाम नहीं पर हिंसा व क्रोध हैं चुलनी पिता श्रावक ६८५ ३ ३११ उपा ध्र ३ चुल्लशतक श्रावक ६८५ ३ ३१५ उपा० अ० ५ चूर्ण दोष
८६६ ५ १६५ प्रव गा ५१८,ध अधि ३श्लो
२२टी पृ.४०,पि नि गा ४०६,
पि विगा ४६,पचा १३ गा १६ चूर्ण भेद
७५० ३४३३ ठा १० स ७१३टी ,पन्न प १३ 'चेइय'शब्दपर टिप्पण परिशिष्ट ३ ४५७ उपा (प्र) व हस्तलिखित प्रतिया चेटक निधान की कथा ६४६ ६ २७६ न सू २७ गा ६५ टी. श्रौत्पत्तिकी बुद्धि पर चोरी का स्वरूप ४६७ २ १६७ १ चोर की प्रसूति अठारह ८६६ ५ ४१५ प्रश्न प्राश्रवद्वार ३ सृ.१२ टी चौतीसअतिशय अरिहतकेह७७ ७६८ सम ३४, स श द्वा ६७ चौतीस अस्वाध्याय १६८ ७ ३५ ठा ४सू २८५, ठा १०सू ७१४,
प्रवद्वा २६८गा १४५०-७१, व्यव.भाष्य उ.७ गा २६६
३१६,प्राव ह प ४गा १३२१-६० १ चोर को चोरी के लिए प्रोत्साहन देना तथा अन्य किसी प्रकार से सहायता देना।