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दो शब्द श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह के सातो भाग के प्रकाशित होने के करीब तेरह महीनों के पश्चात् यह पाठवा भाग पाठकों की सेवा में उपस्थित करते हुए हमें बढे हर्ष और सन्तोष का अनुभव हो रहा है । पाठवें भाग के साथ यह ग्रन्थ समाप्त हो रहा है। निरंतर छ वर्ष क परिश्रम से श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के ये पाठ भाग तैयार हुए है। छः वर्ष पूर्व सोचे एव स्वीकार किये हुए कार्य को पूरा कर अाज हम अपने को भारमुक्त मत एव हल्का अनुभव कर रहे हैं।
यह पाटवाँ भाग पहले के सात भागों का विषय कोप है । इस भाग में सातों भागो में थाये हुए विषयों की विस्तृत सूची अकारादिक्रम से दी गई है। सात भागों के बोल जिन पागम एव सिद्धान्त ग्रन्थों से उद्धृत किये गये हैं उन प्रमाणभूत ग्रन्थों का उल्लेख भी इस सूची में किया गया है । प्रमाणभूत ग्रन्थों का पूरा नाम देने से इमका बहुत अधिक विस्तार हो जाता अतएव यहाँ उनका निर्देश सकेत रूप से किया गया है । सकतों के खुलासे के लिये प्रमाण ग्रन्थों की सकेत सूची पृथक् दी गई है और उसमें अन्यों के पूरे नाम तया प्रत्य कर्ताओं के नाम, प्रकाशन का स्थान और समय आदि दिये गये हैं।
इस अनुक्रमणिका में पाठकों की जिज्ञासा का ख्याल कर एक ही बोल दो चार तरह से बदल कर दिया गया है एव बोल के अन्तर्गत भेद प्रभेदों का भी इसमें समावेश किया गया है । सूची तैयार करते समय यह भी ख्याल रखा गया है कि सख्या विशेष एवं विषय विशेष के वोल लगातार एक साथ प्रा जाये। इसी तरह गाथाए और कथाए भी पास पास रखी गई है। शास्त्र विशेष के जितने मव्ययनों क यर्थ इन भागों में पाये हैं वे भी एक साथ दिय गये हैं । इस प्रकार पाठकों की सुविधा का ख्याल कर हमने यह अनुक्रमगिएका बहुत विस्तृत वनाई है । इस अनुक्रमणिका को तैयार करते समय सातों भागों का प्रमाण अन्यों से, जिनसे कि इन भागों में बोल लिये गये हैं, भी मिलान किया गया है और सातों भागों के बोलों के प्रमाणों में जहाँ कहीं कमी या त्रुटि थी वह इस अनुक्रमणिका में यधासभव ठीक कर दी गई है। यही कारण है कि इसे तैयार करने में इतना समय लगा है और समिति को इसके लिये पर्याप्त परिश्रम उठाना पड़ा है । सहृदय पाठकों से यह भी निवेदन है कि इस विषय सूची से सात भागो में दिये हुए प्रमाण में कुछ भिन्नता हो तो वे विषयसूची के अनुसार भागों में सुधार कर लेवें।
जैन सिद्धान्त बोल सग्रह के सात भागों में कौनसा विषय किम भाग में कहाँ पर है ? पाठकगण इस विषय सूची की सहायता से सुगमतापूर्वक इसका पता लगा सकेंगे तथा साथ में प्रमाण ग्रन्थ होने से शका अथवा विशेष जिज्ञासा होने पर पाठक उन ग्रन्थों को देखकर प्रात्मसन्तोष कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त यह विषयकोष जैन पारिभाषिक