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श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाठवौं भाग , ,३२३ ~~idiomarium
विषय बोल भाग पृष्ठ ' ' प्रमागा साधु के लिये ग्लान साधु ६८३ ७ १०८ वृगा १८५१-१८५८,भश २५ की सेवा करना आवश्यक - उ. सू८०२, उत्तम २६ गा. है या उसकी इच्छा पर
८-१०, उत्तअ २६ प्रश्न४३, निर्भर है?
'. ओ गा ४८,४८,६२,५३२-३३ साध(स्थविरकल्पी) केलिये ८३३ ५ २८ पंच व गा ७७१-७७६ चौदह प्रकार का उपकरण साधु (जिनकल्पी) के लिये ८३३ ५ २८, पच व गा ७७१-७७८ वारह प्रकार का उपकरण साधके लिये वर्जनीयरदोष ५८३ ३.३८ उत्त अ २४गा साधुके संयमकीविशुद्धिदस ६६६ ३ २५७,ठा १०३ ३ सू७३८ । .. साधु के संयम में संक्षोभ ७१४ ३ ३८८ठा १०उ ३सू ५३६ - (अशान्ति होनेके दस कारण साधु के सत्ताईम गुण ६४५ ६ २२८ मम २,७,अावाह अ.४५ ६४६५
। उत्त अ ३१गा १८ ।। साधु के सत्य वचन में भी ६८३ ७ १०७ प्रश्न मवरद्वार २ स. २४, सूय.. क्या विवेक होना चाहिये? . शु.६गा २३०, का र साधुकोआहारकीगवेषणा८६५ ५ १६१ प्रवद्वा ६७ गा ५६५-५६६ में लगने वाले१६उद्गमदोप
ध, अधि ३ श्लो २२ पृ ३२ पिनिगा ६२-६३,पि विगा ३-४,
पंचा १३ गा ५-६ साधुकोनाहारकीगवेपणा८६६ ५ १६४ प्रव द्वा ६७ गा ५६७-५६८ में लगने वाले सोलह
ध अधि ३श्लो २२.४०. पि उत्पादना दोप
नि गा ४०८-४०६,पि विगा ५८-५६,पचा १३गा १८-१६