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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग
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भेद
विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण इन्द्रभूति गणधर की जीव ७७५ ४ २४ विशे. गा १५४६ से १६०५ विषयक शंका-समाधान इन्द्रस्थान की पाँच सभाएं ३६७ १ ४२१ ठा ५ उ ३ सू. ४७२ १ इन्द्र स्थावरकाय ४१२ १ ४३८ ठा. ५ उ १ सू. ३६३ इन्द्रिय का स्वरूप और ३९२ १ ४१८ पन्न प १५ सू १६ १, ठा ५ उसके पाँच भेद
उ ३ सू ४४३ टी, जे प्र. इन्द्रिय की व्याख्या और २३ १ १७ पनप १५ उ १ सू १६ १ टी ,
तत्त्वार्थ अध्या २ सू १६ इन्द्रिय परिणाम ७४६ ३ ४२६ ठा सू ७१३,पन प १३सू.१८२ इन्द्रिय पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पन प १सू १२टी ,भ श ३उ १
सू १३०,कर्म भा १ गा ४६,
प्रव द्वा २३२ गा १३१७ इन्द्रिय मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५७ कर्म भा ४ गा १० इन्द्रियां प्राप्यकारी चार २१४ १ १६३ ठा. ४ उ ३२ ३३६, रत्ना
परि २ सू ५ टी. इन्द्रियों का विषयपरिमाण३६४ १ ४१६ पन्न प १५ उ १ सू १६५ इन्द्रियों के तेईस विषय ६२६ ६ १७५ ठा सू ४७,३६०,४४३,५६६, और २४० विकार
पन प २३उ २सू २६३,प बोल
१२, तत्त्वार्थ अध्या.२सू.२१ इन्द्रियों के दो सौचालीस ६२६ ६ १७५ ठा सू ४७,३६०,४४३,५६६, विकार
पन्न.प.२३उ २सू २६३,प चोल
१२, तत्त्वार्थ अध्या २स २१ इन्द्रियों के संस्थान ३६३ १ ४१६ पन प. १५ उ १ स १६ १,
ठा. ५ उ. ३ स ४४३ टी इहलोक भय
५३३ २ २६८ ठा ७ उ ३ सू ५४६, सम.५ १पृथ्वीकाय।