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________________ रहे । मन्दिर,उद्यान और सरोवर से यह गॉव सुहावना है। उस समय राज्य की विशेष कृपादृष्टि होने से यहाँ का व्यापार बढा चढ़ा था । यहाँ सदा बाजार में मेला सा लगा रहता था । यहाँ आप अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री प्रतापमलजी के पास व्यापार का काम सीखने लगे । स० १६३६ में आपने वम्बई की यात्रा की। वहाँ अपने बड़े भाई श्री अगरचन्दजी के पास रह कर आपने वहीखाता जमा खर्च आदि व्यापारिक शिक्षा के साथ अंग्रेजी,गुजराती,आदि भाषाएं सीखीं। शिक्षा के साथ आपने यहाँ व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त किया । यहीं आपकी शिक्षा समाप्त नहीं होती ।नवीन ज्ञान सीखने की लगन श्रापको जीवन भर रही और आज भी है। ज्ञान सीखने के प्रत्येक अवसर से आपने सदा लाभ उठाया है । दसरे को पढ़ाने और सिखाने में भी पाप सदा दिलचस्पी लेते रहे हैं। कई व्यक्तियों को व्यापार व्यवसाय का काम सिखा कर आपने उन्हें सफल व्यापारी बनाया है । आपने अपनी संस्था से भी कई सुयोग्य व्यक्ति तैयार किये हैं एवं उन्हें ऊँची से ऊँची शिक्षा दिलाई है। संवत् १६४० में आप देश आये। इसी वर्ष आप का विवाह हुमा। कुछ समय देश में ठहर कर संवत् १६४१ में आप पुनः वम्बई पधारे। यहाँ आकर आप एक फर्म में, जिसमें चालानी का काम होता था, मुनीम के पद पर नियुक्त हुए । आपके बड़े भाई श्री अगरचन्दजी इस फर्म के साझीदार थे। ___ बम्बई में सात वर्ष रहकर सं० १९४८ में आप कलकत्ते गये और वहाँ आपने अपनी संचित पूंजी से मनिहारी और रंग की दुकान खोली और गोली सूता का कारखाना शुरू किया। सफल व्यापारी में व्यापारिक ज्ञान, अनुभव, समय की सूझ, साहस, अध्यवसाय, परिश्रमशीलता, ईमानदारी, वचन की दृढ़ता,नम्नता
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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