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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवा भाग
विषय
पाँच प्रकार सम्मोही भावना के
पाँच प्रतिक्रमण
पाँच प्रतिघात
पाँच प्रमाद
वोल भाग पृष्ठ
४०६ १ ४३२
प्रमाण
उत्तम ३६ गा २६५टी, प्रवद्वा
७३ गा. ६४६
३२६ १ ३३७ ठा ५उ ३ सू ४६७, आव ह
अ ४ मा १२५०-१२५१
४१६ १ ४४०
ठा ५उ १ सू ४०६
२६१ १ २७० पचा १गा २३टी, ध भवि २श्लो
पाँच बोल छद्मस्थ साक्षात् ३८६ १४०६ का ५३३ सू.४५०
नहीं जानता
पॉच बोल भगवान् महावीर ३५०, १३६४, से उपदिष्ट एवं अनुमत ३५१ १३६५
३६टी पृ ८१ ठा ६ उ ३मू
५०२, ट १६रलो. १टी
ر
महापर्यवसान के
पाँच भाव जीवों के
२१३
पॉचवोलपासजाकरवंदना३४८ १ ३६३ प्रवद्वा २गा १२४, यावह ह्य् ३
निगा ११६८५४०
करने के असमय के पॉचवोलपासजाकरवंदना ३४६ १ ३६४ प्रवद्वा २गा १२५, याव६ ३
करने योग्य समय के
निगा ११६६ पृ५४१
पॉच वोल भगवान् महावीर ३५२
से उपदिष्ट एव अनुमत
पाँच बोल महानिर्जरा और ३६० १३७४ का ५ १ ३६७ महापर्यवसान के
५३६६, प्रवद्वा ६६
गा ५४४ ध अधि. ३ श्लो.
,
४६पृ १२७
१३६७ ठा५३१ ३६६
.
पॉच बोलमहानिर्जरा और ३६१ १ ३७४ ठा५ उ १ सू ३६७
३८७ १४०७ कर्म भा. ४गा. ६४-६८, अनुसृ
१२६, प्रवद्वा. २२१ गा.६०-६८