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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग
१४३
ज्ञान
विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण जैन साधु के लिए मार्ग- ७८१ ४ २५५ उत्तअ २१ गा.१३-२४ प्रदर्शक वारह गाथाएं ज्ञात, ज्ञातपुत्र ७७० ४ ४ जैन विद्या वोल्यूम १ न १ ज्ञाता के नौं भेद ६४१ ३ २१२ प्राचा.श्रु १ अ उ ५सू ८८ ज्ञाताधर्मकथांगकी१६ कथाह०० ५ ४२७ जाताधर्मकथांग के दोनों ७७६ ४ १८५ श्रुतस्कन्धों का विषयवर्णन
११ ११. पन १ २६ सू ३१२ ज्ञान कुशील ३६६ १ ३८४ ठा ५ उ ३ सू ४४५
ज्ञान के चौदह अतिचार८२४ ५ १४ श्राव.ह प्र ४ पृ ५३० ज्ञान के दो भेद १२ १ १० ठा २३ १सू ७१, न सू २ ज्ञान के पॉच भेद ३७५ १ ३६० या ५उ ३सू ४६३, कर्म भा ,
गा ४, न०८ १. ज्ञान गर्भित वैराग्य ह० १ ६५ क भा २ श्लो ११८-११४ ज्ञान नारकियों में ५६० २ ३३७ जो प्रति ३ सू ८८ ज्ञानपरिणाम ७४६ ३ ४२७ ठा १०७ ३ सू ७१३,पन्न प १३ ज्ञान पुलाक ३६७ १३८२ ठा५सू ४४५, मश २५उ ६ ज्ञान मार्गणा और भेद ८४६ ५ ५८ वर्म०मा ४ गा. ११ ज्ञान विनय ४९८ २ २२६ उव सू २०, भश २५ उ ७सू
८०२,ठा ७उ ३ सू५८५,ध.
अधि.३ श्लो ५४ टीपृ.१४१ ॐ ज्ञान के चौदह अतिचारों में सुदिन्न दुपडिच्छिय दो अतिचार है । इनका अथ इस प्रकार है
सुटठुदिन्न-शिष्य में शास्त्र प्रहण करने की जितनी शक्ति है उससे अधिक पढाना। यहा सुछ शब्द का अर्थ है शक्ति या योग्यता से अधिक ।
दुछपडिच्छिय-मागम को बुरे भाव से ग्रहण करना