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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग
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विषय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण मेघ के अन्य चार भेद १७४ख१ १२६ ठा.४ उ ४ सू ३४६ मेघ चार १७२ १ १२७ ठा ४उ ४ सू. ३४६ मेतार्यस्वामी का परलोक ७७५ ४ ५४ विशे.गा.१६४६-१९७१ के विषयमेंशंकासमाधान मेरुपर्वत के चार वन २७३ १ २५१ ठा.४उ.२सू ३०२ मेरुपर्वत के सोलह नाम८७० ५ १७१ सम.१६,ज.वक्ष.४ सू. १०६ मैत्री,प्रमोद,करुणा और ४६७ २ १८८ माध्यस्थ्य भावनाएं मंत्री भावना २४६ १ २२४भावना ,च ,क.भा २श्लो.३५.४२ मैथन विरमण रूप चतुर्थ ३२० १ ३२७ सम २४,घाचा श्रु २८ ३घ २४ महाव्रत की पाँच भावनाएं
सू १७६,प्रव द्वा ७२गा ६३९, श्राव ह अ. १६५८,ध अधि ३
श्लो ४५ टी. १२५ मैथुन विरमण व्रत निश्चय ७६४ ४ २८२ प्रागम श्रोर व्यवहार से मैथुन संज्ञा १४२ १ १०५ ठा ४ सू ३५६, प्रव द्वा १४५ मेधन सज्ञा
७१२ ३ ३८७ ठा १० उ ३सू ७५२,भ श ७उ८ मैथुनसंज्ञा चार कारणों से १४५ १ १०६ टा ८उ ४१ ३५६,प्रव द्वा १४५ उत्पन्न होती है
मा२३ मोक्ष
४६७ २ २०६ मोक्ष के पन्द्रह अंग ८५० ५ १२१ पच व गा.१५६-१६३ मोक्षगामीयात्माके१४स्वम८२६ ५ २० भग १६३ ६ सृ ५८० मोक्षतत्त्वज्ञानाद्वारासिवर्णन६३३ ३ १९८ नागा ३२-३३ मोक्षप्राप्ति के काल स्वभाव२७६ १ २५७ प्रागम ,गरण ,सम्मति मा ५ आदि पाँच कारण
कागड गा५३