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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ माग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण नौ पुण्य
६२७ ३ १७२ ठाउ ३सू ६७६ नौ प्रकार की वसति ह२३ ६ १७० याचा श्रु २८ १ २ उ २ नौ प्रतिवासुदेव ६४८ ३ २१८ सम.१५८, प्रव द्वा २११गा.
१२ १३,श्राव ह.अ १पृ.१५६ नौ बलदेव ६४६३ २१७ सम १५८, प्रवद्वा २०६गा
१२११,प्राव ह अ.१११५६ नौबलदेवोंकेपूर्वभवकेनाम६४६ ३ २१८ सम १५८ नौ वातें मनःपर्यय ज्ञान के ६२६ ३ १७२ न सू १७ लिए आवश्यक हैं नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति ६२८ ३ १७३ म उ ३सू ६६३,सम । नौ भेद काल के ६३४ ३ २०२ विशे गा २०३० नौ भेद ज्ञाता के ६४१ २ २१२ भाचा..१.२उ.५ सू ८८ नोमहानिधियांचक्रवर्तीफी ६५४ ३ २२० ठा ६ उ ३ सू.६ ७३ नौ लोकान्तिक देव ६४५ ३ २१७ ठा, उ ३ सू ६८४ नौ वासुदेव ६४७ ३ २१७ प्राव ह.अ १गा ४० पृ १५६,
प्रवद्वा २१०गा १२१२ नौवासुदेवोंकेपूर्वभवकेनाम६५० ३ २१८ सम १५८ नौ विगय ६३० ३ १७५ ठाउ.३ सू ६७४, प्राव ह
अगा१६.१ टी नौस्थानरोगउत्पन्न होने के६३७ ३ २०५ ठाउ ३सू ६६७ नौ स्थान संभोगी को ६३२ ३ १७६ ठाउ ३ सू ६६१ विसंभोगी करने के न्यग्रोध परिमंडल संस्थान ४६८ २ ६८ ठा ६सू ४६५,कर्म.भा.१गा ४० न्यायदर्शन ४६७ २ १३२ न्यून तीथे वाले पर्व छः ४३३ २ ४० ठा ६उ ३सू ५२४,चन्द्र प्रा १२,
उत्त.भ २६गा १५