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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग
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विषय
बोल,भाग पृष्ठ प्रमाण राम कृष्णा रानी ६८६ ३ ३४६ प्रत व ८ . रायप्पसेणी (राजप्रश्नीग)७७७ ४ २१६ सूत्र का संक्षिप्तविषयवर्णन राशि की व्याख्या और भेद ७३ १.४ सम १४६ ।' १ राशि संख्यान ७२१ ३४०४ ठा १०३ ३ सू ७४७. राष्ट्र धर्म
६६२ ३ ३६१ ठा.१० उ.३ स ७६ ० रुचक प्रदेश आठ ६०७ ३ १२५ प्राचाश्रु १७ १उ १नि गा ५२
टी ,यागम ,भ श ८उसू ३४७
टी,टा ८ उ ३ सू ६२४ २ रुचि
१२७ १६१ भश १उ ६७६ । रुचि दस
६६३ ३ ३६२ उत्त.व २८गा १६-२७ रूप मद
७०३ ३ ३७४ ठा १०सू ७१०, ठा ८सू ६०६ ३ रूप सत्य
६६८ ३ ३६६ ठा १०सू ७४१,पन्न प ११ सू
__ १६५,ध अधि ३श्लो ४१ टी १२१ रूपस्थ धर्मध्यान . २२४. १ २०८ ज्ञान प्रक ३६, यो प्रका ६, कभा
२ श्लो २०६ रूपातीत धर्मध्यान २२४ १ २०६ ज्ञान प्रक ४०, यो प्रका १०,
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कभा २श्लो २०६:I,
६०.१ ४२ तत्त्वार्थ अध्या ५ सू.४ रूपी अजीव के ५३० भेद ६३३३ १८१ पन्न प १सू ३,उत्त श्र.३६गा ४६ रूपी के दो भेद ६१ १ ४२ 'भग १२उ ५सू ४४०
५ धान प्रादि के ढेर का नाप कर वा तोल कर परिमाण जानना । २ श्रद्धा पूर्वक तान दर्शन चारित्र प्रादि के सेवन की इच्छा ।
३ वास्तविक्ता न होने पर भी रूप विरोप को धारण करने से किसी व्यक्ति, या चम्नु को उस नाम से पुकारना रूपसत्य है।
रूपी