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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ३१५ गा २०४ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सांसारिकनिधिके प्रकार ४०७ १ ४३३ ठा ५उ ३ सू ४४८ सागरोपम ३२ १ २२ ठा २उ ४सू ६ सागरोपम के तीन भेद १०६ १७८ अनु.सू १३८-१४०, प्रव द्वा. १५६गा १७२७.१७३२ सागारियागार (एगहाण ५१७ २ २४७ श्राव ह अ.६पृ८५३,प्रव.द्वा ४ का आगार) सागारी (शय्यादाता) ३३४ १३४५ भश १६उ.२सू ५६७,प्रव द्वा अवग्रह ८५गा ६८१,माचा श्रु २चू १ अ.७उ २ सू १६२ साठ नाम अहिंसा(दया)के ६२२ ३ १५१ प्रश्न संवरद्वार १सू.२१ साडीकम्मे कर्मादान ८६० ५ १४४ उपा अ १सू ७,भ श ८उ.५ सू ३३०,प्राव हम पृ८२८ साढ़े पचीस आय क्षेत्र १४२ ६ २२३ प्रब द्वा २७५गा.१५८७-६२,पन्न. प १सू ३७,३ र १नि गा ३२६३ सात अवग्रह प्रतिमाएं ५१८ २ २४८याचा व २८ १ ७उ २सू १६ १ सात आगार एगहाण के ५१७ २ २४७ श्राव ह न ६४८५३,प्रवद्धा ४ सात आगार पुरिमड (दो ५१६ २ २४६ प्राव ह भ पृ८५२, प्रत्र द्वा पोरिसी) के .४ गा २०३ सात आयु भेद ५३१ २ २६६ ठा ७ उ ३ सू ५६ १ सातएकेंद्रियरत्नचक्रवर्तीके५२६ २ २६५ ठा ७उ ३ सू ५५७ सातकर्मोकाएकमाथबन्ध ५६०३ ८३ तत्त्वार्थ (सु०) अध्या ६सू २६ होनेपरबन्ध केविशेषकारण से विशेप कर्मका वन्ध होना कैसे संगत हो सकता है? सात का संहरण नहीं होता५३० २ २६६ प्रवद्धा २६१गा.१४१६ व्याख्या.
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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