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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
आठवाँ भाग
जैन सिद्धान्त बोल संग्रह के सात भागों का विषय कोष
मंगलाचरण
आसाढे धवलाइ छुट्टि चवणं चित्तस्स तेरस्सिए । सुद्धा जगणं सुकिएह दसमी, दिक्खा य मग्गस्सिरे ॥ जस्सासी वइसाह सुद्ध दसमी, गाणं जणांदणं । सुक्खो कत्ति अमावसाइ तमहं वंदामि वीरं जिए ||
भावार्थ - आषाढ़ सुदी छठ को देवलोक से चव कर चैत सुदी त्रयोदशी को जिसने जन्म धारण किया, मगसिर वदी दशमी को जिसने लोक-कल्याण के लिये दीक्षा अङ्गीकार की, वैशाख सुदी दशमी को जिसे लोक को आनन्द देने वाला पूर्ण ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हुआ एवं अन्त में कार्तिक मास की अमावस्या के दिन जिस का निर्वाण हुआ ऐसे श्री वीर भगवान् को मैं वन्दना करता हूँ ।