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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,पाठवा भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण आर्यापाढआचार्यकीकथा-२१ ४ ४६६ नवपद गा १८टी.(सम्यक्त्वद्वार) सम्यक्त्व के स्थिरीकरण नामक प्राचार के लिये
आलोचना करने योग्य ६७० ३ २५८ भ श २५ उ ७ सू. ७६६, साधु के दस गुण
ठा १० उ ३ सू. ७३३ भालोचना के दस दोष ६७२ ३ २५६ भ. श २५ उ, ७ सू vie,
ठा १० उ ३ सू. ७३३ आलोचना देने योग्य ६७१ ३ २५६ म. श. २५ उ.७ सू. ७६६, साधु के दस गुण
ठा १० उ.३ सू. ७३३ आलोचना पर ८ गाथाएं ह६४ ७ २४६ आलोयणा करने योग्य ६७० ३ २५८ म श २५ 3 ७ सू ७६६, साधु के दस गुण
ठा १० उ ३ सू ७३३ आलोयणा करने वाले के ५७६ ३१६ ठा ८ उ ३ सू ६०४,भ.श २५ माठ गुण
उ. ७ सू. ७६६ भालोयणादेने वाले साधु५७५ ३ १५ ठा ८ उ.३ सू ६.४,भ.श. २५ के आठ गुण
उ ७ सू ७६E आलोयणामाया की करने ५७७ ३ १६ ठा ८ उ ३ सू ५६७ के भाठ स्थान आलोयणा माया की न ५७८ ३१८ ठा८ उ ३ सू ५६५ करने के आठ स्थान पावलिका
५५१ २ २६२ नं. वक्ष २ सू १८ आवश्यक के छः भेद ४७६ २ ६० भाव. ह. भावश्यक के छः भेदों का ४७६ २ ६३ प्राव ह. पारस्परिक सम्बन्ध