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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ भाग
विषय बोल- भाग पृष्ठ प्रमाणा' . आक्षेपणी कथा की व्याख्या१५४१ ११२ ठा४ उ.२ सू.२८२ दश.अ. और भेद
निगा-४-१९४ । - पाख्यायिका निःसृतअसत्य७०० ३ ३७२ ठा १० उ ३ स. ७४ १,पन्न प ११
सू.१६५,ध अधि.३लो ४,१टी
१२२ आगति नारकी जीवों की ५६० २ ३२७ प्रव. द्वा १८२गा १०६१-६३ . भागमः . ॥३७६ १ ३६६ रत्ना. परि ४ सू १,२ आगम की व्याख्यो, भेद ८३ १६. रत्ना.परि ४] १,२ मनु सू १४४ आगम निराकृत साध्य ५४६ २ २६१ रत्ना परि ६ सू ४३ धर्म विशेपण पक्षाभास
आगम पैंतालीस ६६७ ७ २६० जै ग्र.,अभि राभा १ प्रस्तावमा पागम प्रमाण २०२ १ १६१ भय उ ४ स १६३,अनु सू १४४ आगम बत्तीस ६६६ ७ २१ आगम व्यवहार ३६३ १ ३७५ ठा ५उ २८ ८२.१,भ श८3८
सू ३४० आगम व्यवहार के छः ३६३ १ ३७५ ठा ५ उ २ मू ४२१, भ श ८ . भकार
उ८ सू ३४० आगामी उत्सर्पिणी के ७८४ ४ २६५ सम १५६ वारह चक्रवर्ती आगामी उत्सर्पिणी के ५११ २ २३६ ठा.७ उ ५५ ६,सम १५६ सात कुलकर आगामी चौबीस तीर्थकरह ६ १६७ सय १५८,प्रवद्धा ७ गा ३०० से ऐरवत क्षेत्र के
३०२ भागामी चोवीस तीर्थकर९३०६ ११६ सम १४८, प्रब द्वा५ भरत क्षेत्र के
गा २६३-२६५