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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण झूठ बोलने के आठ कारण५८२ ३ ३७ साधुप्र. महाव्रत २ झूठा कलंक लगाने वाले ४६० २ ६२ वृ (जी) उ. ६ सू २ को प्रायश्चित्त
ठाणांग (स्थानांग)सूत्र ७७६ ४ ७६.११४ का संक्षिस विषय वर्णन
ढाई द्वीप में चन्द्र सूर्यादि ७८६ ४ ३०२ सूर्य प्रा १६ ज्योतिथी देवों की संख्या
णाप, णायपुत्त
७७० ४ ४
जैनविद्या वोल्यूम १ न।
१ तज्जात दोष
७२२ ३ ४०६ ठा १० उ.३ सू ७४३ १ तज्जात दोष ७२३ ३ ४११ ठा.१०उ ३ सु ७४३ २ तज्जात संसृष्ट कल्पिक ३५३ १ ३६८ ठा ५ उ १ सृ. ३६६ तत्काल उत्पन्नदेवष्टकारणों१३६ १ १०१ ठा ४ उ ३ सु ३०२ से मनुष्य लोक में आता है
१ शास्त्रार्थ के समय प्रतिवादी के जाति,कुल आदि के दोषों को निकाल कर उस पर व्यक्तिगत आक्षेप करना ।
२ अभिग्रह विशेष, जिसके अनुसारे साधु तभी श्राहार लेता है जब कि दिये जाने वाले भाहार विशेष से दाता के हाय और भाजन खरडे हुए हों।