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________________ श्री जैन सिद्वान्त बोल संग्रह, पाठवॉ माग २५६ विषय घोल भाग पृष्ठ प्रमाण मास वारद ८०२४ ३०३ सूर्य प्रा १०प्रा.प्रा.१६ १ मासिक अनुद्घातिक ३२५ १ ३३३ ठा. उ २ सू ४३३ २ मासिक उद्घातिक ३२५ १ ३३४ ठाउ २ सू ४३३ माहणका अर्थ क्या श्रावकह८३ ७ १२६ भश १उ ७सू ६२टीभ श.२ भी होता है ? उ स ११२टी माहेन्द्र देवलोक का वर्णन ८०८ ४ ३२१ पन्न प २सू ५३ मिच्छाकार (मिथ्याकार) ६६४ ३ ३५० भग २५उ सू८०१,ठा १० समाचारी उ ३सू ७४६, उत्त अ २६गा ३, प्रवद्वा १०१गा ७६. ३ मितवादी ५६१.३ १२ ठाउ ३सू ६०७ मिथ्यात्व आश्रय २८६ १२६८ ठा ५उ २ सू ४१८,सम ५ मिथ्यात्व दस ६६५ ३ ३६४ ठा १०उ ३सू ७३४ मिथ्यात्व पाँच २८८ १ २६७ ध अधि २श्लो २२टी पृ ३६, कर्म भा ४ गा५१ मिथ्यात्व प्रतिक्रमण ३२६ १३३८ ठा ५७ उसृ.४६७,भाव,ह म. ४गा.१२५०-१२५११५६४ मिथ्या दर्शन ७७ १५५ भग ८उ २८.३२०,ठा ३स् १८४ ४ मिथ्या दर्शन प्रत्यया २६३ १ २७८ ठा २उ.१सू.६०, ठा ५उ २मृ क्रिया ४१६,पन्न.१ २२सु २८४ मिथ्या दर्शन शल्य १०४ १ ७४ सम ३,आ.३उ ३सू.१८२ १ जिम प्रायश्रित का भाग न दो गानि गुरु प्रायचित्त । २ जो प्रायश्चित्त विभाग करके दिया जाय यानि लघु प्रायश्चित्त । ३ जीत्रों के अनन्तानन्त होने पर भी उन्हें परिमित बताने वाले अमियावादी। ४ मिथ्या दर्गन मर्थात् तत्त में श्रद्धान या विपरीत श्रद्धान से लगने वाली रिया मिथ्या दर्शन प्रत्यया मिया कहलाती है।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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