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श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, पाठवॉ भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण बयालीसदोषाहारादिकेहह० ७ १४६ पिं नि गा ६६६ बयालीस पुण्य प्रकृतियाँ १६३ ७ १५० कर्म भा ५गा.१५.१७ । बयालीसप्रकृतिनामकर्मकीहह१ ७ १४६ पन प २२३ ३स २६३ वयालीस भेद आश्रय के ६६२ ७ १४६ नवगा १६ वयासी पाप प्रकृतियाँ ६३३ ३ १८२ कर्म मा ५ गा १५-१७,नव० बलदस इन्द्रिय,ज्ञानादिके ६७५ ३ २६३ ठा.१०उ ३ सू ७४० बलदेव
४३८ २ ४२ ठा ६सू ४६१, पन.प १सू ३७ बलदेव नौ - ६४६३ २१७ प्राव.इ पृ. १५६,प्रव द्वा.२०६
गा १२११,सम.१५८ चलदेव और वासुदेवों के ६५१ ३ २१६ सम १५८ पूर्वभव के प्राचार्य नौ बलदेव लब्धि १५४ ६ २६४ प्रव द्वा २७० गा १४६३ वलदेवों के पूर्वभव के नाम६४६ ३ २१८ सम १५८ वलमद
७०३ ३३७४ ठा १०सू ७१०,ठा ८सू ६०६ चल वीय पुरुषाकार परा-४१६ १ ४४१ ठा ५उ १सू ४०६ क्रम का प्रतिघात १बला अवस्था
६७८ ३ २६८ ठा १०२ ३ सू ७७२ बत्ताभियोग आगार ४५५ २ ५९ उपा अ.१८,प्राव.ह अ६
__८१०,ध अधि २श्लो २२ पृ.४१ बहिरात्मा
१२५ १ ह परमा गा १३ २ बहुमानाचार ५६८३६ घ अधि १श्लो १६टी पृ.१८ बहुरत निद्रव कामतशंका५६१ २ ३४२ विशे गा २३०६-२३३२,भ समाधान सहित
श६उ ३३,भ श.13 1,प्राव.
ह भाष्यगा १२५-१२६५३१२ १ दम अवस्थाओं में से चौथी अवस्था । २ ज्ञानाचार का एक भेद, ज्ञानी और गुरु के प्रति भक्ति एव श्रद्धा रखता