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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अाठवाँ भाग
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विषय बोल भाग पृष्ट प्रमाण पञ्चक्रवाण के दस प्रकार ७०४ ३ ३७५ ठा. १०सू ७४८, भ.श ७ उ २ पञ्चक्खाण में प्राउ तरह ५८६ ३ ४२ घाव.ह.प्र.६ नि गा.१५७८, का संकेत (चिह्न)
प्रवद्वा ४ गा २०० पट की कथा औत्पत्तिकी ह४६ ६ २६२ न सू.२७ गा ६३ टी. चुदि पर पडिमाग्यारह श्रावक की ७७४ ४ १८ दशा. द.६, सम ११ पडिमा बारह भिक्खु की ७६५ ४ २८५ सम १२,दशा द.७,भ श २उ । पडिलेहणा पचीस ६३६ ६ २१८ उत्त.भ २६ गा २४-२५ पडुच्चमक्विएणं-निविगइ६२६ ३ १७४ श्राव.हम ६८५४ ,प्रवद्वा.४ पञ्चक्खाण का आगार
गा. २०५ पढमापढय के चौदह द्वार ८४२ ५ ३८ भ श १८३.१ सू.६१६ पणित की कथा श्रौत्प- ६४६ ६ २५६ न सू २७ गा.६३ टी. त्तिकीवुद्धि पर पण्डित मरण ८७६ ५ ३८३ सम.१७, प्रव द्वा १५७गा.१०.६ पण्डित वीर्यान्तराय ३८८ १४११ कर्म भा १गा ५२,पन्न ५.२३ १पण्य वस्तु चार २६४ १ २४६ ज्ञा. भ ८ सू.६६ पतंग वीथिका गोचरी ४४६ २ ५१ ठा ६सू ५ १४,उत्तम ३० गा.
१६,प्रव द्वा६७ गा ७४५, ध.
अधि ३श्लो.२२ टी.पृ ३७ पति की कथा औत्पत्तिकी ४६ ६ २६६ नसू २७ गा.६३ टी बुद्धि पर पदवियाँ सात
५१३ २ २३६ठा.३७.३सू १७७ टी. पद श्रुत
६.१ ६४ वर्म.भा १ गा ७ १ झयाणक, बेचने की वस्तु ।