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श्री जैन सिद्धान्त बोल संमह, पाठवौं भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण सान्निपातिक भाव छः ४७४ २८१ अनु सू १२६, टा ६उ ३ सू
४३७,कर्म भा.४गा ६४-६६ सान्निपातिक भाव के ४७४ २८१ अनु सू १२६, ठा ६ उ ३ सू छब्बीस भंग
५ ३७, कर्म भा ४गा ६४ ६६ सान्निपातिकभावके भंग ४७४ २८३ अनुसू १२६, ठा ६ उ.३ सू. २६में से जीवों में पाये जाने
५३५,कर्म भा ४ गा ६४-६६ वाले छ: भंग सापेक्ष यतिधर्म केविशेषण८०६ ४ ३१४ ध वि सू ३६६ पृ.७५ सातपदिकव्रत का दृष्टान्त ७८० ४ २४६ प्राव ह गा.१३४ च पीठिका भाव अननुयोग पर
नि गा १७२ सामन्तोपनिपातिकी २६४ १ २७६ ठा.२उ १सू ६०,ठा ५३ २सू (सामन्तोवणिया) क्रिया
४१६ श्राव ह अ४६१२ सामानिक
७२६ ३४१५ तत्त्वार्थ अध्या ४सू ४ सामान्य
४१ १ २६ रत्ना परि ५ सू १,स्या का.४ सामान्य के दो प्रकार से दो ५६ १४१ रत्ना परि ५स ३-५, रत्ना परि
___ ७ सू १५-१६ सामान्य गुण छः ४२५ २ १६अागम द्रव्य त अध्या ११श्लो २-४ सामान्य विशेष ५६ १४१ रत्ना परि ५ सू ३-५ सामायिक आवश्यक ४७६ २80 मावह अ.१ सामायिकोग्छेदोपस्था-६८३ ७ ११८ भश १उ ३सू ३७टी १६० पनिक चारित्र अलग अलग क्यों कहे गये हैं ? सामायिक कल्प स्थिति ४४३ २ ४५ ठा ३उ ४ सू २०६,ठा ६ उ.३
सू५३०,वृ (जी) २६
भेद