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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, श्राठवाँ माग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण तीन भेदयोनि के ३ प्रकारसे ६७ १ ४७ ठा ३सू १४०,तत्त्वार्थ,प्रध्या २ तीनभेद गजा की ऋद्धि के१०१ १ ७१ ठा० ३ उ० ४ २०२१४ तीन भेद लक्षणाभास के १२० १ ८४ न्यायदी प्रका १ तीन भेद लोक के ६५ १४५ लोक भा २ स १२,भ श.११
उ १० सू ४२० तीन भेद वनस्पति के ७० १५० ठा ३उ १ सू १४१ तीन भेद वेद के ६८ १ ४६ कर्म भा १गा २२ तीन भेद वैराग्य के 80 १६५ क.भा • श्लो ११८-११९ तीन भेद व्यवसाय के ८५ १ ६२ ठा.३ उ ३ स १८५ तीन भेदश्रद्धा,प्रतीनि रुचि१२७ १ १० भश १ उ ६ सू ७६ तीन भेद समकित के दो ८० १ ५८ विशे गा २६७५, द्रव्यलो स प्रकार से
३श्लो ६६८-६७०,ध. प्रधि २ श्लो २२टी पृ ३६, श्रा.प. गा ४६-५०,प्रव द्वा १४६ गा
६४३-६४५,कर्म भा १ गा १५ तीन भेद समारोप के १२१ १ ८५ रत्ना परि १,न्याय प्र अध्या ३ तीन भेद सागरोपम के १०६ १ ७८ अनु स १३८-१४०, प्रव द्वा
१५६ गा १०२७ से १०३२ तीन मनोरथ श्रावक के ८८ १६४ ठा ३उ ४८ २१० तीन मनोरथ साधु के ८४ १६४ ठा ३ उ ४ सू २१० तीन लिंग समकित के ८१ १ ५९ प्रव०वा.१४८ गा. ६२ तीन वलय
११५ १ ८१ ठा० ३ उ० ४ सू० २२४ तीन विराधना
८७ १६३ मम०३ तीन शल्य
१०४ १ ७३ धअविलो २७ ७६,सम
३,टा०३ उ० ३ सू १८२