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श्री जैन सिद्धान्त बोल सपह, श्राठवॉ भाग ३०१ xmmmmmmmmmmm~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~ विषय बोल मा
बोल भाग,पृष्ठ प्रमाण संघातनामक के पाँचभेद३६१ १४१६ कर्म भा १गा ३६,प्रय द्वा २१६ संघात श्रुत ६.१ ६.४ संघात समास श्रत १०१ ६४ कर्म भा १गा." संज्ञा की व्याख्या औरभेद१४२ १ १०४ ठा ४उ ४सू ३५६.प्रव वा १४५ संज्ञा चार का अल्प वहुत्व १४७ १ १०७ पन्नप'८'सू१४८ चार गति में संज्ञा दस
७१२ ३ ३८६ ठा १०उ ३सू ७५२,भ श ७ ८ संज्ञी श्रुत ८२२ ५ ४ नसू४०, विशे गा ५०४-५२६६ संजी
८१६ ठाउ.२ सू ५६ । संज्ञी के तीन भेद २२ ५ ५ नसू४०, विशे गा ५०४ संजीमार्गणा औरउसकभेद६ ५६३ कर्म भा ४ गा १३ ... संज्वलन कपाय १५८ १११६ पन्न प १४सू १८८, ठा ४उ १सू
.. २४६ कर्म भा १गा १७-१८ संठाण छः अजीव के ४६६ २ ६६ भ श २५उ ३सू ७२४,पन्न प १सू ४ संठाण छः नीव के ' ४६८२६७ टा.इसे.४६५, कर्म भागा ४. संथारग पइण्णा ६८६ ३३५४ दप' । १ संभिन्न श्रोतो लब्धि ५४ ६२११ प्रवद्वा २७०गा १४६२' संभोगी को विसंभोगी ६३२ ३ १७६ ठाउ ३ सू६६१ करने के नौ स्थान संभोगी साधुओं कोअलग३४५ १ ३५६ ठा ५३ १ सू ३६८ ... करने के पॉच बोल संयत . '६६ १५० भश ६ उ ३१ २३७ संयतासंयन
६६ १५० भश.६उ ३सू २३५
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१ ऐसी शक्ति विशेष जिससे शरीर के प्रत्येक भाग से सुना जाय ।