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कत्ता, वम्बई, मद्रास, कराची, कानपुर, देहली, अमृतसर और अहमदावाद में अपनी फर्म की शाखाएं खोलीं । इसके सिवा जापान के ओसाका नगर में भी आपने ऑफिस खोला ।
यहाँ यह बता देना भी अप्रासंगिक न होगा कि कारखाने और ऑफिस में विभिन्न कार्यों पर कुशल व्यक्तियों के नियुक्त होने पर भी आप आवश्यकता पर छोटे से बड़े सभी काम निस्संकोच भाव से कर लेते थे । शुरू से अन्त तक सभी कामों की जानकारी आप रखते थे । सर्वथा लोगों पर आपका कार्य निर्भर रहे यह आपको कतई पसन्द न था । यही कारण है कि रंगों के विश्लेषण के फॉर्मुले सीखने के लिये आपने एक जर्मन विशेषज्ञ को केवल दैनिक पाँच मिनिट के लिये ३००) मासिक पर नियुक्त किया एवं उसके लिये आपने निजी प्रयोगशाला स्थापित की ।
संवत् १६५७ में एक पुत्री ( वसन्तकंवर ) और दो पुत्रों ( श्री जेठमलजी और पानमलजी ) को छोड़कर आपकी धर्मपत्नी. का स्वर्गवास होगया। आपकी पत्नी धर्मात्मा और गृहकार्य में बड़ी दक्ष थीं। इसी कारण आप गृह-व्यवस्था की चिन्ता से सदा मुक्त रहे एवं अपनी सभी शक्तियाँ व्यापार व्यवसाय में लगा सके थे । पहली धर्मपत्नी के स्वर्गवास होने पर आपका दूसरा विवाह हुआ । कर्त्तव्यनिष्ठ सेठियाजी का उस समय व्यापार-व्यवसाय की ओर ही विशेष ध्यान था। आप कुशलतापूर्वक व्यापार व्यवसाय में लगे रहे औरउत्तरोत्तर उन्नति करने लगे। सं० १६७१ (सन् १६१४) के गत महायुद्ध में आपको रंग के कारखाने से आशातीत लाभ हुआ । संवत् १६६५ में आप एक भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो गये । इस समय आप कलकत्ते थे । वहाँ के प्रसिद्ध डॉक्टर और वैद्यों का इलाज हुआ पर भापको कोई लाभ न पहुँचा । अन्त में आपने