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श्री जैन सिद्वान्त बोल संमह, आठवाँ भाग
विपय
बोल भाग पृष्ठ प्रमाण __ छः पर्याप्ति ४७२ २ ७७ पन्न प १ सू १२टी.,भ श ३
उ १२ १३०,प्रव द्वा २३२गा
१३१७-१८, कर्म भा १गा ४६ छःपर्व अधिक तिथि वाले ४३४ २ ४१ ठा ६ सू ५२४,चन्द्र प्रा १२ छःपर्व न्यूनतिथि वाले ४३३ २ ४० ठा ६ उ ३सू ५२४, चन्द्र प्रा
१२,उत्त ग्र, २६ मा १५ छः प्रकार का अवधिज्ञान ४२८ २ २७ ठा ६सू ५२६, न.सू ६-१५ छः प्रकार का आयुबन्ध ४७३ २ ७६ भ श ६उ ८ठा ६ उ ३सू १३६ छःप्रकार का प्रश्न ४६४ २ १०३ ठा ६ उ ३ सू० ५३४ छःप्रकारकामोजनपरिणाम४८६ २ ९८ या ६ उ ३ सू ५३३ छः प्रकार का विवाद ४६३ २ १०३ ठा ६ ३ ३ सू ५१२ छःप्रकार की गोचरी ४४६ २ ५१ टा ६सृ ५१४,उत्त अ३०गा
१६,प्रव द्वा ६७गा ७४५,ध.
अधि ३ श्लो २२ टी पृ३७ छः प्रकार के मनुप्य ४३७ २ ४१ ठा ६ उ ३ सू ४६० छः प्रकार से झूठा कलंक ४६० २ ६२ वृ (जी) उ ६ सू २ लगाने वाले को प्रायश्चित्त छः प्रतिक्रयण ४८० २ ६४ ठा. ६ उ ३ स ५३८ १ छः प्रत्यनीक ४४५ २ ४६ भ श.८ उ८ सृ ३३६ छः प्रत्याख्यान विशुद्धि ४८१ २ ६५ प्राव ह नि.गा १५८६४ ८४६,
ठा ५ उ ३ सू ४६६ टी छः प्रमाद
४५६ २ ५६ ठा ६ उ ३सू ५०२ छःप्रमाद प्रतिलेखना ४४६ २ ५३ ठासू ५०३,उत्त अ २६गा २६ छः प्रश्न परदेशी राजा के ४६६ २ १०७ रा सू ६३-७७ छःबात छनस्थ के अगोचर४८६ २ १०१ ठा० ६ उ०३ सू ४७८
१ शत्रु की तरह प्रतिकूल प्राचरण करने वाला ।