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is श्री जैन सिद्धान्त चौल संग्रह पाठवा भाग
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विषय . बोल" भाग पृष्ठ प्रमाण , आचांगंगम के नवें के ७८४८४ भाचा ध्रु.१.उ. ४ .६ : चौथे उ की१७मूलेगाथाएं
आचागि सूत्र के नवें भ० ८७४३५, ४८२ श्राचा श्रः १ ..२ दूसरे उ० की सोलह गाथाएं प्राचारांगसूत्र नाअ०के ८७४ ५ ४८१ दूसरउ की१६मूलगाथाएँ Se -
TORECTIFIYE आचासंगसूत्र नवें २२१६६ भाचा.अ.म.उ. 'एक पहले उ की तेईसगा TREATREEEE ।भापागंग सूत्र प्रथम श्रत-१००५७२७२ समा TE ) स्कन्ध के कावन उद्देशे ६ ६
FEETE आचार्य - . ० . ०२७४.१२५२ भ. मंगलाचरण का - आचार्य उपाध्याय केगळ३४४६१३५५ ठा. ५ . ३६॥ में पाँच फलह स्थान आचार्य उपाध्याय के गण ३४३ १५३५४ . उ. EINE से निकलने के पाँच कारणे : २ भाचार्य उपाध्याय के : ४३४२३६५३ ठा। उ.३ मा विशिष्ट पॉच अतिशय . भाचार्य उपाध्यायके सात १४३ २४३ ठा. उस.३८६, ताउ.३ संग्रह स्थान
- स. १जार भाचार्यकी ऋद्धिके ३.भेद१.२ १३७१ ठा. ३ ३.४२१४
भाचार्य के छः कर्तव्य ४५१, २, ५ ......-१५० टी .प्राचार्य के छत्तीस गुण ६२,५,६४ प्रवद्वाexekx.५४ श्राचार्य के तीन, भेद, १९३८ १३७२ रा. स. ETAL भाचाये के पाँच प्रकार३४२.१.३५२ भधि. ३ श्लो. ४६टी.१११८
EATE प्राचार्य पदवी ५१३२ २३६ ठा. ३ .३ सू. १00 टी.
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