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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग
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विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण परपाषंडी प्रशंसा २८५ १ २६५ | उपा असू ७, प्राव ह अ परपाषंडी संस्तव
२८५ १ २६५ ६१८१० परमाणु
६१३ ठा १सू ४५ परमाणु
७३ १ ५३ ठा ३उ २ सू १६५ । परमात्मा
१२५ १६० परमा गा १५ परमाधार्मिक देव पन्द्रह ५६० २ ३२४ प्रव.द्धा १८०गा १०८५-१०८६ परमाधार्मिक पन्द्रह ८५६ ५ १४३ सम १५ परमावधिज्ञानी क्या चरम १८३ ७ १०३ भ ग ७३ ७ सू.२६१ । शरीरी होते हैं ? परमेष्ठी पाँच २७४ १ २५२ भ मगलाचरण परम्परागम
८३ १६१ अनुसू १४४, । परलोक विपयमेंगणधर७७५ ४ ५४ विशे गा १६४६-१६७१ मैतार्यस्वामीकाशंकासमाधान परलोक नास्तित्ववादी ५६१ ३ ६४ ठा ८उ ३ मू ६०७ परलोक भय ५३३ २ २६८ ठा ७७ ३सू ५४६,सम ७ . परविस्मयोत्पादन ४०२१ ४३० उत्त य ३६गा २६१,प्रव द्वा ७३ पर सामान्य
५६ १४१ रत्ना परि ७ सू. १५,१६ परार्थानुमान ३७६ १ ३६६ रत्ना परि ३ सृ. २३ परार्थानुमान के पाँच अङ्ग३८० १ ३६६ रत्ना परि ३,न्यायदी प्रमा.३ पगवर्तमान प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५१ कर्म भागा १-16 परिकर्मोपघात ६६८ ३ २५५ ठा १०उ ३ स ७३८ परिकंचना प्रायश्चित्त २४५ख१ २२४ ठा ४उ १ २६३ ' परिक्रम संख्यान ७२१ ३ ४.४ ठा १०उ ३८ ७४७
४६ १ २६ ठा २ १ सू ६४
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