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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १७३ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण देवलोक में ज्ञान ८०८४ ३३० मी प्रति ३ सू २१६ : • देवलोक में दृष्टि ८०८ ४ ३३० जी प्रति ३ सू २१५
देवलोकदेवोत्पत्तिसंख्या८०८.४ ३२८ जी प्रति ३ स २१३ देवलोक में प्रवीचार ८०८ ४ ३३३ तत्त्वार्थ अध्या ४सू८,९. देवलोक में लेश्या ८०८४ ३३० जी प्रति ३ सू २१५ ... देवलोक में विकुर्वणा ८०८ ४ ३३१ 'जी प्रति ३ सू २१७ : देवलोक में वेदना ८०८४ ३३६ तत्त्वार्य. अध्या ४,उव सू ३८ देवलोक में समुद्घात ८०८ ४ ३३१ जी.प्रति ३ सू २१७१ - देवलोक में मुख और ऋद्धि८०८ ४ ३३१ जी प्रति ३ सू २१७. देव वैमानिक के २६ भेद ४४.६ २२७ पन प. १सू ३८,उत्तम ३६गा
२०७-१४,म श१सू ३१० देवसम्बन्धी उपसर्ग चार२४० १ २१६ ठा ४उ ४सू ३६१, सूय अ ३
उ पनि गा ४८ टी १ देवाधिदेव ४२२ १ ४४६ ठा ५उ १सू ४०१,भ श १२
उ. सू.४६२ देवाभियोग थागार ४५५ २ ५६ उपाश्र.१सू.८,प्राव ह.अ६४
८१०,ध मधि २श्लो २२पृ ४१ देवार्य-भ०महावीरकानाम७७० . ४ १० जनविद्या वोल्यूमन १ देविंदथव पइगणा ६८६ ३ ३५५ द प. । देवी(पूष्पवती)कीपारिणा-६:१५ ६८० नसू २७गा ७२, श्राव ह नि. मिकी बुद्धि की कथा
. गा.४६ : देवेन्द्राक्ग्रह . ३३४ १ ३४४ भ श १६उ २सू ५६७, प्रत्र द्वा
८५ गा.६८१,माचा.अ २१
७ उ.२ सू १६२ १ देवों से भी वह कर भतिशय वाले,अतएव उनके भी पाराध्य,केवलज्ञान केवल'दर्शन के धारक अरिहन्त भगवान् देवाधिदेव कहलाते है ।
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