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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, अायाँ भाग
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विषय - - बोल भाग पृष्ठ प्रमाण दो भेद श्रेणी के ५६ १ ३३ कर्म भा २ गा २, द्रव्यलो स ३
श्लो ११६६-१२३४,विशे.गा
१२८४,प्राव म गा ११६-१२३ दो भेद संसारी जीव के ८ १४ ।
ठा,२८ ७३,७६,१०१,भ श.१३ नौ प्रकार से .
उ १सू ४७०टी ,भाप्र गा ६६
६७, प्रातुर गा ४२-४३ दो भेद सम्यक्त्व के चार १० १८
प्रव द्वा १४६गा ६४२टी कर्म प्रकार से
भा १गा १५,ठा २सू ७०,पन्न प.
१सू ३७, तत्त्वार्थ अध्या १सू ३ दो भेद सामान्य के दो ५६ १४१ रत्ना परि ७सू १५,१६,रत्ना प्रकार से
. परि ५ सू ३-५ दो भेद स्थिति के ३१ १ २१ ठा २ उ. ३सू ८५ . दो भेद-हेतु और साध्य ४२ १ २७ रत्ना परि ३सू ११,१४ दो राशि,
७(क) १४ सम १४६ दोविवक्षा-मुख्य औरगौण ३८ १ २४ तत्त्वार्थ अध्या ५ सू ३१ ।।
७२३ ३ ४११ ठा. १० उ ३ सू ७४३ । दोप अठारह दो प्रकार से ८८७ ५ ३६७ प्रव द्वा ४१ गा ४५१-४५२, जोअरिहन्तदेव में नहींहोते
स श द्वा ६६गा १६१-१६२, दोप अठारह पौपध के ६४ ५ ४१० शिक्षा दोपाठअनेकान्तवाद पर५६४ ३ १०२ प्रमी अध्या १ मा १ सू.३३ दोष आठ चित्त के ६०३ २ १२० क भा २ श्लो.१६०-१६१ दोपआठ साधु को वर्जनीय५८३ ३ ३८ उत्त अ २४ गा ६-१० . दोष उन्नीस कायोत्सर्ग के ८६8 ५ ४२५ प्राव ह अ५गा १५४६-४७,प्रव.
द्वा गा २४७,यो प्रका ३पृ.२५०
दोष