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विषयसूची
सर्ग : १
श्लोक पृष्ठ मङ्गलपीठिका
१-६ १-२ ___ जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें एक पूर्वदेश है । उसमें श्वेतातपत्रा नगरी सुशोभित है।। श्वेतातपत्रा नगरी अपनी निराली शोभा रखती है।।
७-३६ २-६ . श्वेतातपत्रा नगरीका राजा नन्दिवर्धन था और उसकी रानी वीरवती थी। दोनोंका दाम्पत्यजीवन सुखमय था।
३७-४५ ६-७ नन्दिवर्द्धन और वीरवतीको नन्दन नामका पुत्र हुआ। यौवनने नन्दनके सौन्दर्यको वृद्धिंगत किया। एक बार नन्दन मित्रोंके साथ वनमें गया। वहाँ उसने शिलापट्टपर विराजमान श्रुतसागर मुनिको देखा । भक्तिवश उन्हें नमस्कार कर उनसे धर्मोपदेश सुना। व्रत धारण किये। पिता नन्दिवर्धनने नन्दनको युवराजपद दिया। नन्दनने राज्यका विस्तार किया।
४६-६५ ७-१२ पिताके आग्रहसे युवराज नन्दनने प्रियङ्कराके साथ विवाह किया।
६६-६८ १२
सर्ग : २ राजा नन्दिवर्धन सुखसे समय व्यतीत कर रहे थे । एक दिन मेघको विलीन होता देख वे संसारसे विरक्त हो गये। ऊंची छतसे नीचे उतरकर राजा सभागहमें गये और युवराज नन्दनको संबोधित कर उससे अपने दीक्षा लेनेके विचार प्रकट करने लगे। नन्दनने भी अपनी विरक्तिका भाव प्रकट किया परन्तु पिताके आग्रहवश राज्य संभाल लिया । राजाने पिहितास्रव मुनिके पास दीक्षा ले ली ।
१-३४ १३-१७ राजा नन्दनने पितवियोगका शोक छोड़ राज्यका पालन किया। प्रियङ्कराने नन्द नामक पुत्रको जन्म दिया । बालक दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा । इसीके बीच ऋतुराज वसन्तका शुभागमन हुआ जिससे वनकी शोभा निराली हो गयी।
३५-६१ १७-२१ वनमें अवधिज्ञानी प्रोष्ठिल मुनिराजके दर्शन कर वनपालने राजाको खबर दी। खबर पाते ही राजाने उठकर उन्हें नमस्कार किया और वन्दनाके लिये वनको प्रस्थान किया। ६२-७० २१-२२
१-११ २२-२३
सर्ग:३ राजा नन्दनने मुनिराजको नमस्कार कर उनसे अपने पूर्वभव पछे । प्रौष्ठिल मुनिराजने उसको भवान्तर सुनाते हुए कहा
कि राजन् ! तुम इस भवसे पूर्व नौवें भवमें भरतक्षेत्रको गङ्गानदीके उत्तर तटपर स्थित वराह पर्वतपर सिंह थे। वह सिंह अनेक जीवोंकी हिंसा कर एक दिन अपनी गफाके अग्रभाग पर विश्राम कर रहा था। उसी समय आकाशमार्गसे विहार करते हुए अमितकीति और अमरप्रभ मुनिराजने उसे देखा । दोनों मुनिराज आकाशसे उतर कर वहीं