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वर्धमानचरित
सर्ग : १८
इन्द्रकी आज्ञासे कुबेरने समवसरणकी रचना की । दिव्यध्वनि नहीं खिर रही थी इसलिये इन्द्रने अवधिज्ञानसे उसके कारण पर विचार किया। इन्द्र गौतम ग्रामसे इन्द्रभति ब्राह्मणको लाया। उसके साथ उसके पांच सौ शिष्य भी आये। समवसरणमें आते ही उन सबने भगवान् वर्धमानकी शिष्यता स्वीकृत की। श्रावणकृष्णा प्रतिपदाके दिन भगवान्की दिव्यध्वनि प्रकट हुई । इन्द्रने उनका स्तवन किया। ३० वर्ष तक विहार कर उन्होंने धर्मका उपदेश दिया। अन्तमें कातिककृष्णा चतुर्दशी के अन्तिम महर्तमें उन्होंने पाबापुरसे निर्वाण प्राप्त किया । देवोंने निर्वाणकल्याणकका उत्सव किया। . १-१०१ २४९-२६८ असग कविने अपनी प्रशस्ति दी