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वर्धमानचरितम् आकर्णमाकृष्य धनुनिशातो योधेन वाणो घनमुष्टिमुक्तः । विभिद्य वर्मापि भटं जघान न साधयेत्कि खलु सुप्रयुक्तः ॥११ यावन्निषादी मदवारणस्य मुखच्छदं नाक्षिपति क्षणेन। तावत्पृषत्कैः प्रेतिदन्ति योधस्तमेकपानितरामसीव्यत् ॥१२ मदानिलाय प्रतिसामजस्य क्रुध्यन्करेण स्वयमेव नागः । अपास्य वक्त्रावरणं प्रयातः प्रोल्लङ्घय यन्तारमपि प्रचण्डः ॥१३ कुम्भेषु मग्नैनिजबर्हवज्य विरेजिरे शङ्कचयैरिभेन्द्राः। आरावहीनः शिखिनां समूहैरारूढकूटा इव गण्डशैलाः ॥१४ श्वेतातपत्राणि नरेश्वराणां नामाक्षराङ्कुविशिखैरनेकैः । योधप्रधाना लुलुवुः परे स्वं शिक्षाविशेषं युधि दर्शयन्तः ॥१५ धृत्वा चिरं युद्धधुरां मृतानां तेजस्विनां क्षत्रियपुङ्गवानाम् । अश्रावयन्नामकुलं च नग्ना व्यावृत्य शूरैरवलोकितानाम् ॥१६ खङ्गप्रहारैर्दलितादिभानां कुम्भस्थलादुच्छलितैः समन्तात् ।
मुक्ताफलौनिचिता दिवापि ताराङ्कितेवाभवदम्बरधीः ॥१७ गिरा था वह धनवंशजातं-सुदढ़ बाँस से उत्पत्र (पक्ष में उत्कृष्ट कुल में उत्पन्न) अखण्डित धनुष के समान आत्मधैर्य का आलम्बन लेकर खड़ा रहा॥१०॥कान तक धनुष को खींचकर योद्धा द्वारा सुदृढ़ मुट्ठी से छोड़े हुए वाण ने कवच को भी भेदकर सुभट को मार डाला सो ठीक ही है क्योंकि जिसका प्रयोग अच्छी तरह किया गया है वह निश्चय से क्या नहीं सिद्ध करता? अर्थात सभी कुछ सिद्ध करता है ।।११।। कोई सवार जब तक मदमाते हाथी के मुख के परदे को दूर नहीं कर पाता है कि तब तक सामने खड़े प्रतिद्वन्द्वी हाथी के योद्धा ने एक साथ छोड़े हुए वाणों से उसे अत्यन्त सो दिया। भावार्थ-शत्रु ने ऐसे वाण चलाये कि वह परदा मुख के साथ एकदम संलग्न हो गया ॥१२॥ विरोधी हाथी के मद से सुवासित वायु के प्रति क्रोध करता हुआ कोई अत्यन्त तीव्र क्रोधी हाथी, स्वयं ही सूंड से मुख के आवरण को दूर कर तथा महावत को उल्लङ्घकर-उसकी आन से बाहर हो भाग खड़ा हुआ ॥१३॥ अपने मयूरपिच्छ को छोड़कर जिनका शेष भाग गण्डस्थलों में निमग्न हो गया है ऐसे वाणों के समूह से गजराज, उन गण्डशैलों-काले पत्थर की गोल-गोल चट्टानों से युक्त पर्वतों के समान सुशोभित हो रहे थे जिनके कि शिखरों पर शब्दहीन मयूर बैठे हुए थे ॥१४॥ युद्ध में अपनी विशिष्ट शिक्षा को दिखलाते हुए कितने ही प्रधान योद्धाओं ने नामाक्षरों से चिह्नित अनेक वाणों के द्वारा राजाओं के सफेद छत्रों को छेद डाला था ।।१५।। चिरकाल तक युद्ध का भार धारण कर जो मर गये थे तथा शूरवीर मुड़कर जिन्हें देख रहे थे ऐसे तेजस्वी श्रेष्ठ क्षत्रियों के नाम और वंश को चारण लोग सुना रहे थे ॥१६।। तलवार के प्रहारों से खंडित हाथियों के गंडस्थल से सब ओर उछले हुए मोतियों के समूह से व्याप्त आकाशलक्ष्मी दिनमें भी ताराओं से चिह्नित के समान हो गई थी॥१७॥समीप में खड़े हुए लोग भी जिनके वाण धारण करने और १. दन्तच्छदं म० । २. प्रमिदन्ती म० । ३. योधास्तमेक म० । ४. मसीव्यन् म । ५. भभल्लैः प्रतिद्विरदमल्लधनुर्विमुक्तः कुम्भेषु मग्नशिखरैय॑लसन्गजेन्द्राः आरावहीनवदनैःशिखिन्नां समूहैरारूढतुङ्गशिखरा इव शैलवर्गाः
-जीवन्धरचम्पू स्मम्भ १० ।