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एकादशः सर्गः
१३३ समदि वपुरवाप्य हुण्डसंस्थं कृमिकुलजालचितं च पूतिगन्धि । पतति दुरुपपादकप्रदेशाच्छरवदधोवदनः स वज्रवह्नौ ॥७ अतिनिशितविचित्रहेतिहस्तो भयतरलं प्रविलोक्य नारकौघः । दह पच विशसोबधान नानाविधमिति वक्ति करोत्यरं तथैव ॥८ गतिरियमशुभप्रदा च का वा दुरितमकारि मया पुरा किमुग्रम् । अहमपि क इति क्षणं विचिन्त्य तदनु विभङ्गमवाप्य वेत्ति सर्वम् ॥९ हुतभुजि परितापयन्ति चण्डा मुखमवदार्य च पाययन्ति धूमम् । बहुविधमथ पोलयन्ति यन्त्रैश्चटिति परिस्फुटितास्थिघोररावम् ॥१० विलपति करुणं कृतार्तनादः करजनिवेशितशातवज्रसूचिः। वृकनिवहविलुप्यमानदेहो व्रजति विचेतनतामनेकवारम् ॥११ तटपविसिकताविभिन्नपादः सहजतृषा परिशुष्कतालुकण्ठः । करिमकरकरासिखण्डितोऽपि प्रविशति वैतरणी विषाम्बु पातुम् ॥१२ उभयतटनिविष्टनारकौघेर्मुहुरुषरुध्य स तत्र ग्राह्यमानः। कथमपि समवाप्य रन्ध्रमार्तो गिरिमधिरोहति वज्रदावदीप्तम् ॥१३ हरिकरिशयुपुण्डरीककङ्कप्रभृतिभिरेत्य विलुप्यमानदेहः ।
भृशमसुखमवाप्य तत्र चित्र तरुगहनं प्रतियाति विश्रमार्थम् ॥१४ वह नारकी शीघ्र ही हुण्डक संस्थान से युक्त, कीड़ों के समूह से व्याप्त तथा दुर्गन्धित शरीर को प्राप्त कर दुःखमय उपपाद शय्या बाण के समान अधोमुख होता हुआ नीचे वज्राग्नि पर पड़ता है ।। ७॥ नाना प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र जिनके हाथ में थे ऐसे नारकियों का समूह भय से चञ्चल उस नारको को देख, इसे जला दो, पका दो, मार डालो, और ऊपर बाँध दो, इस प्रकार के वचन कहता है और वैसा ही शीघ्र करने लगता है ॥ ८ ॥ यह अशुभ को देनेवाली गति कौन है ? पूर्वभव में मैंने कौन-सा भयंकर पाप किया था, और मैं भी कौन हूँ? इस प्रकार क्षणभर विचार करने के बाद वह विभङ्गावधि ज्ञान को प्राप्त कर सब कुछ जान लेता है ॥ १९॥ अत्यन्त क्रोधी नारको उस नवीन नारको को अग्नि में संतप्त करते हैं, मुख फाड़ कर धुएं का पान कराते हैं और उसके बाद यन्त्रों द्वारा उसे पेरते हैं, पेरते समय उसकी हड्डियां टूट कर चट-चट का भयंकर शब्द करती हैं ॥ १० ॥ जिसके नखों में वज्रमय पैनी सूइयां चुभाई गई हैं ऐसा वह नारको आर्तनाद करता हुआ करुण विलाप करता है तथा भेड़ियों के समूह के द्वारा जिसका शरीर लुप्त किया जा रहा है ऐसा वह नारकी अनेक बार मूच्छित हो जाता है ॥ ११॥ जन्म के साथ ही उत्पन्न प्यास से जिसका तालु और कण्ठ सूख गया है ऐसा वह नारकी विषमय जल पीने के लिये वैतरणी में प्रवेश करता है। उस वैतरणी के तट पर जो वज्रमयी बालू रहती है उससे उसके पैर विदोर्ण हो जाते हैं और हाथियों तथा मगरों के सूड रूपी तलवार से उसके खण्ड-खण्ड हो जाते हैं ॥ १२ ॥
दोनों तटों पर बैठे हुए नारकियों के समूह उसे बार-बार रोक कर उसी वैतरणी में डुबा देते हैं। वह दुःखी नारकी किसी तरह छिद्र पाकर निकलता है तो वज्रमय दावानलसे प्रज्वलित