________________
२५४
वर्धमानचरितम्
शार्दूलविक्रीडितम् तैरेवान्तरिता बभुर्नवनवस्तूपाः पदार्था इव
___ प्रादुर्भावमुपागता जिनपति द्रष्टुं तदा कौतुकात् । सिद्धानां प्रतियातनाञ्चिततया चन्द्रातपश्रीमुषः ___पिण्डीभूय भुवि स्थिता इव पृथक् मुक्त्येकदेशा इव ॥२५
मालभारिणी विविधानि समन्ततश्च तेषां पृथुकूटानि सभागृहाणि रेजुः । ऋषिमुन्यनगारसेवितानि ध्वजमालाविरलीकृतातपानि ॥२६
प्रहर्षिणी आकाशस्फटिकमयस्ततःपरोऽभूत्प्राकारो हरिमणिगोपुरस्तृतीयः। मूर्तत्वं स्वयमुपगम्य वायुमार्गः संद्रष्टुं जिनमहिमामिवागतः क्षमाम् ॥२७
उपजातिः तद्गोपुराणां गगनाग्रभाजां द्विपाश्र्वयोः संनिहितानिरेजुः । माङ्गल्यवस्तूनि विचित्ररत्नविनिमितान्यब्दघटादिकानि ॥२८
शार्दूलविक्रीडितम् तन्मध्ये रुचिरं त्रिभङ्गसहितं पीठं मनोज्ञं बभा
___वाशालात्प्रसृताः प्रदक्षिणमहापीठस्पृशो वेदिकाः । आकाशस्फटिकैः परस्परपृथग्भूताः कृता भासुरै
रासन्द्वादशभिगंणैः सविनयैरध्यास्यमाना मुदा ॥२९ स्थित नौ-नौ स्तूप सुशोभित हो रहे थे जो ऐसे जान पड़ते थे मानों उस समय जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन करने के कौतुक से प्रकट हुए नौ पदार्थ ही थे। वे स्तूप चाँदनी की शोभा को अपहृत करते थे-श्वेत वर्ण के थे और सिद्धों को प्रतिमाओं से युक्त होने के कारण ऐसे प्रतोत होते थे मानों इकट्ठे होकर पृथिवी पर स्थित हुए पृथक्-पृथक् युक्ति के एक देश हो हों ॥ २५ ॥
____उन स्तूपों के चारों ओर ऐसे सभागृह सुशोभित हो रहे थे जिनके शिखर बहुत विस्तृत थे, ऋषि, मुनि और अनगार जिनकी सेवा करते थे-ऋषि मुनि अनगार जिनमें बैठकर धर्म्यध्यान करते थे तथा ध्वजाओं की पंक्ति से जिन्होंने आतप-घाम को विरल कर दिया था ।२६।। उनके आगे इन्द्रनील मणियों के जिसमें गोपुर बने हुए थे ऐसा आकाश स्फटिक मणिमय तीसरा प्राकार था वह प्राकार ऐसा जान पड़ता था मानो जिनेन्द्र भगवान् की महिमा को देखने के लिये स्वयं आकाश मूर्त रूप को प्राप्त हो पृथिवी पर आ गया हो ॥ २७ ॥ उन गगनचुम्बी गोपुरों के दोनों ओर रखे हुए, नाना प्रकार के रत्नों से निर्मित दर्पण तथा कलश आदि मङ्गल द्रव्य सुशोभित हो रहे थे ॥ २८ ॥ उनके मध्य में देदीप्यमान, तीन कटनियों से सहित, मनोहर पीठ सुशो भित हो रहा था। उस पीठ के चारों ओर कोट से लेकर विस्तृत, प्रदक्षिणा रूप से महापीठ का१. सन्निहिता विरेजुः म० ।