________________
२५६
वर्धमानचरितम्
उपजातिः चतुर्महादिग्वलयप्रभेदाद्विषड्विधानूनगणप्रभेदाः। सोपानमाला 'दशषट्कभास्वत्परीतपीठान्तगता बभूवुः ॥३६ त्रिशालवर्योन्नतरत्नगोपुरे श्रीद्वारपाला वरहैमवेत्राः। आसन्यथासंख्यमुदारवेषा वन्यामरा भावनकल्पजाश्च ॥३७ आद्यस्य शालस्य मनोज्ञमानस्तम्भस्य संख्यानविदांवरा ये । सदन्तरं चित्रविभूतियुक्तं तैर्योजनस्यार्द्धमिति प्रणीतम् ॥३८ आद्यस्य शालस्य मनोहरस्य द्वितीयशालस्य च मध्यमाहुः । त्रियोजनं कल्पनगावलोभिविराजमानस्य जिनागमज्ञाः ॥३९ द्वितीयशालस्य विचित्ररत्नप्रभावलीसारितभानुभासः। तृतीयशालस्य मुनिप्रधाना द्वियोजनं चान्तरमित्युशन्ति ॥४०
वंशस्थम् तृतीयशालस्य विचित्रकेत निरन्तरैश्छादितवायुवम॑नः । द्विपारिपीठस्य च कोतितं बुधैः स्फुरत्प्रभस्यान्तरमप्रयोजनम् ॥४१
उपजातिः अनूनकान्तेजिनसंनिधानदेशस्य धात्रीतलभूषणस्य ।
अप्यन्तरं रत्नविराजमानस्तम्भस्य षड्योजनमाहुरार्याः ॥४२ आर्यिकाएं, ज्योतिष्क देवों की देवियां, व्यन्तर देवों की देवियाँ, भवनवासी देवों की देवियां, भवनवासी देव, व्यन्तर देव, कल्पवासी देव, मनुष्य और पशु आकर क्रम से बैठे हुए थे ॥ ३५ ॥ चारों महादिशाओं के वलय भेद से विस्तृत गणों के भी बारह भेद थे अर्थात् चारों दिशाओं में वलयाकार बारह सभाएँ थीं। उन सभी सभाओं में देदीप्यमान, प्रदक्षिणा रूप से स्थित, तथा सिंहासन के अन्त तक गई हुई सोलह-सोलह सीढ़ियों की पंक्तियाँ थीं ॥ ३६ ॥ तीन कोटों के उत्कृष्ट तथा उन्नत रत्नमय गोपुरों पर क्रम से व्यन्तर, भवनवासी और कल्पवासी देव द्वारपाल थे जो सुवर्ण का बेंत लिये हुए थे तथा उत्कृष्ट वेष के धारक थे ॥ ३७॥
जो गणितज्ञ मनुष्यों में अत्यन्त श्रेष्ठ थे उन्होंने प्रथम कोट और सुन्दर मानस्तम्भ का समीचीन अन्तर जो कि नाना प्रकार को विभूति से युक्त था आधा योजन था ऐसा कहा है ॥३८॥ जिनागम के ज्ञाता पूरुषों ने मनोहर तथा कल्पवृक्षो को पंक्ति से सुशोभित पहले और दूसरे कोट का मध्य-बीच का अन्तर तीन योजन कहा है ॥ ३९ ॥ नाना प्रकार के रत्नों की प्रभा पंक्ति से सूर्य की दीप्ति को दूर हटाने वाले दूसरे और तीसरे कोट का अन्तर दो योजन था ऐसा आचार्य कहते हैं ॥ ४० ॥ निरन्तर लगी हुई नाना प्रकार की पताकाओं से आकाश को आच्छादित करने वाले तीसरे कोट और देदीप्यमान प्रभा से युक्त सिंहासन का अन्तर विद्वानों ने आधा योजन कहा है ।। ४१ ।। अत्यधिक कान्ति से युक्त, तथा पृथिवीतल के आभूषणस्वरूप गन्धकुटी और रत्नों से
१. दशषट्क म०।