Book Title: Vardhaman Charitam
Author(s): Ratnachandra Muni, Chunilal V Shah
Publisher: Chunilal V Shah

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ अनात्मनीनेति विचार्य धीमता अनात्मनीने कुशलः क्रियाविधौ अनारतं तं तासां अनिगुह्य वीर्यमसमान अनिम्धनेन ज्वलवेन धीरस् अनिन्दिता वैक्रियिकाः शतानि अनियतपथबन्धकारणं त्वं अनुकूलतमेऽपि सोदरस्य अनुदिनं कुमुदं परिवर्धयन् अनुपमसुखसिद्धिहेतुभूतं अनुरागपराजितं जगत् अनूनकान्तेजिनसंविधान अनूनशीलाभरणैकभूषा अनूनसत्त्वा बहुरत्नशालिनो अनूनसत्त्वेन विमत्सरात्मा अनेकशो यत्र मृतो न जातो अनेकसंख्यासु कुयोनिषु भ्रमन् अन्धकारशबरेण गृहीतां अन्धकारपटलेन घनेन अन्तर्मदं करिपतेरिव बृंहितानि अन्तर्मुहूर्त स्थितिकं यदायुस् अन्यस्मिन्नहनि धनञ्जयो जिनेन्द्र अन्यरक्तहृदयापि निकामं अन्यथा निजवधूजनालये अन्यदा वन्यनागेन्द्रं अन्येद्युरादाय सिताक्षसूत्रं अन्येद्युः प्रविलमदर्पणे स्वबिम्बै अन्येद्युरात्मसमर्वाद्धत अन्यैरजय्यं युधि कामदेव अन्योऽहं नितरां शरीरत इतो अन्योऽन्यमाहूय विनापि वैरं अपत्यवक्त्राम्बुजवीक्षणावधि अपनय नितरां त्रिशल्यदोषान् अपनय रथमत्र बध्यतेऽश्वो अपनीतातपत्रादि अपनीतकण्टकतृणोपलादिका नुक्रमणी २।२३।१६ १०५०।१२५ ३।१००1३१ १६।३९।२२३ ९।८९।११४ १८।९३।२६६ ११।३१।१३६ ४।३६।३७ १८।६०।२६० ११।४३।१३८ ७।१६।७७ १८.४२।२५६ १२।१७।१४५ १०।२२।१२१ २।४२।१८ १२/५७/१५१ १०/५१।१२५ १३।५८|१६२ १३।५०।१६१ ६।५४।७२ अपवर्गकारणपदार्थ अपराः १ तदीशवाहिनी अपरिग्रहोऽपि स महद्धि अपरे न च साधयन्ति यो अपरेद्युरनून सत्त्वयुक्तो अपहृतकुथकण्टकध्वजादीन् अपायविचयोऽथवा निगदितो अपास्तपद्मा कमलेव कान्ति अपि 'जातु न प्रकृतिसौम्य अपि नाम तृणं च दुर्बलं अपीषदुद्यन्मुकुलांकुराङ्कितं १०।५४।१२६ ११।४४।१३८ ७७९७।८८ ३|४|२३ १८।८५।२६५ अप्येवं समनुभवन्दशाङ्ग अभवत्कमलेव यौवनस्य अभवस्त्वं गिरौ तत्र अभयात्मतया प्रहृष्टचेता अभवद्विमुख भवान्न तस्मिन् अभिगर्जति तावुद्धतो अभिधाय गिरं प्रपन्न काला अभिदाय धीरमिति अभिमानिनमार्द्रचेतसं अभिरक्षितमपि तवासिलता अभिवन्द्य तपः श्रिया समेतं अभीयस्तुस्तौ प्रधनाय वीरा अभूत्तदास्य विनाश विभ्रमा अभेद्यमप्यावरणं विभिद्य अभ्रङ्कषान्तर्गतनील अभ्यर्चयन् जिनगृहान् अमात्यसामन्तसनाभिसंहति १५।१६०।२१० १४।११।१६९ १३।७१।१६४ ८।४५।९६ ३।२१।२४ ५।२७।५१ १४।४०।१७३ १।५२/९ ९।७१।११२ १५।९४।१९४ अमितक्षमामृतजलेन ९।८।१०३ अमानवाकारमुदीक्ष्य लक्ष्म्या अमृतच्युता मुनिगिरा अमेय कान्तिसम्पत्ति अमेयगाम्भीर्यगुणस्य दूरा अमोघमुखमुन्नतं अम्भः कायिकसत्त्वहिंसन अम्भोराशिः करानिन्दोः २७१ १६।३४।२२२ ७/५७१८३ १६।४८।२२४ ७१५६।८३ १७।११९।२४७ ७।९३।७ १५।१४६।२०७ ५.१७१४९ १६।५१।२२४ ७१३९।८० २।४८।१९ १४|३७|१७३ ४।१३।३४ ३।१५।२३ १७।९८।२४४ ४।६८।४१ ७।४४१८१ १७।१०९।२४५ १६।१९।२२० ७।३५।८० ५।६९।५६ १७।११७।२४७ ९।७४।११२ २।१२।१४ ९।४४।१०८ १।१५/३ १।६५।१२ २।३६।१७ ९।८३।११३ १६।४९।२२४ १६।११।२१९ ३।७६।२९ १२।२६।१४७ ८८६।१०१ १५।१२०/२०० ३।६०।२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514