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वर्धमानचरितम्
सौधर्मकल्पादवतीर्यं पुत्रः पित्रोस्तयोः संमदमादधानः । अल्पकान्तिद्युतिसत्त्वयुक्तो हरिध्वजोऽभूत्कनकध्वजाख्यः ॥ १८ अकारयच्चा रुंजिनाधिपानामनारतं गर्भगतोऽपि मातुः 1 यो दौहृदायास पदेन पूजां सम्यक्त्वशुद्धि प्रथयन्निव स्वाम् ॥ १९ यस्मिन्प्रसूते ववृधे कुलश्रीश्चन्द्रोदये प्रत्यहमम्बुराशेः । वेलेव चूत द्रुमपुष्पसंपत्पुष्पाकरस्येव च संनिधाने ॥२० विगाह्यमाना युगपच्चतस्त्रो नरेन्द्र विद्याः सहसा विरेजुः । विशुद्धया तस्य धिया निसर्गाद्दिशोऽपि कीर्त्या कमनीयमूर्तेः ॥२१ यो यौवनश्रीनिलयैकपद्मोऽप्यनून धैर्यः स्ववशं निनाय । अरातिषड्वर्गमनन्यसाध्यं विद्यागणं च प्रथितप्रभावः ॥२२ यदृच्छया यान्तमुदीक्ष्य पौराः सुनिश्चलाक्षा इति यं प्रदध्युः । किं मूर्तिमानेष स चित्तजन्मा किं रूपकान्तेरवधिस्त्रिलोक्याः ॥ २३ निपत्य यस्मिन्पुरसुन्दरीणामिन्दीवरश्रीरुचिरा सतृष्णा । कटाक्षसम्पन्न चचाल मग्ना सुदुर्बला गौरिव खञ्जनान्ते ॥२४
कान्ति, दीप्ति और पराक्रम से सहित कनकध्वज नाम का पुत्र हुआ ।। १८ ।। गर्भ स्थित होने पर भी उसका बालक ने दोहला सम्बन्धी कष्ट के बहाने माता से निरन्तर जिनेन्द्र भगवान् की सुन्दर पूजा कराई थी जिससे ऐसा जान पड़ता था मानो वह अपनी सम्यक्त्व को शुद्धि को हो प्रकट कर रहा हो ।। १९ ।। जिस प्रकार चन्द्रमा का उदय होने पर समुद्र की बेला और वसन्त ऋतु का सन्निधान प्राप्त होने पर आम्र वृक्ष की पुष्प रूप संपत्ति प्रति दिन बढ़ने लगती है उसी प्रकार उस पुत्र के उत्पन्न होने पर माता-पिता की कुल - लक्ष्मी - वंश परम्परागत संपत्ति प्रति-दिन बढ़ने लगी ॥ २० ॥ सुन्दरता की मूर्तिस्वरूप उस पुत्र की स्वभाव से ही शुद्ध बुद्धि के द्वारा एक साथ अवगाहन को प्राप्त हुई, आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता और दण्ड नीति नामक चारों राजविद्याएँ तथा कीर्ति के द्वारा अवगाहन को प्राप्त हुई, पूर्व आदि चारों दिशाएँ शीघ्र हो सुशोभित होने लगीं । भावार्थ - उसकी बुद्धि इतनी निर्मल थी कि वह एक ही साथ चारों राजविद्याओं में निपुण हो गया तथा चारों दिशाओं में उसकी कीर्ति फैल गई ॥ २१ ॥ जो यौवन रूपी लक्ष्मी के रहने के लिये अद्वितीय कमल था, जो उत्कृष्ट धैर्य का धारक था, तथा जिसका प्रभाव अत्यन्त प्रसिद्ध था ऐसे उस कनकध्वज ने दूसरे के द्वारा असाध्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य इन छह अन्तरङ्ग शत्रुओं के समूह को तथा अनेक विद्याओं के गण को अपने अधीन कर लिया था ॥ २२ ॥ स्वेच्छा से जाते हुए उस पुत्र को देख कर नगरवासी लोग अत्यन्त निश्चल नेत्र होकर ऐसा विचार करने लगते थे कि क्या यह वही कामदेव है अथवा तीन लोक को सुन्दरता की चरम सीमा है ? || २३ || जिस प्रकार अत्यन्त दुर्बल गाय कीचड़ में मग्न हो अन्यत्र नहीं जाती है उसी प्रकार नगर निवासी स्त्रियों की नील कमल को लक्ष्मी के समान सुन्दर तथा सतृष्ण - तृष्णा से सहित ( गाय के पक्ष में प्यास से सहित ) कटाक्ष संपत्ति उस कनकध्वज में निमग्न हो अन्यत्र नहीं जाती थी । भावार्थ - वह इतना सुन्दर था कि नगर की स्त्रियाँ उसे सतृष्ण नेत्रों से देखती ही