________________
द्वादशः सर्गः
यत्राङ्गनानां वदनारविन्दे निश्वालोभेन पतन्मु 'दालि: । कराहतो हस्तमपि प्रहृष्टो रक्तोत्पलाशङ्किमनाः परैति ॥१२ तस्याभवत्पालयिता विनीतो राजा प्रजापालनलब्धकीर्तिः । पुरस्य वीरः कनकाभनामा पुरस्सरो नीतिविदां सतां च ॥१३ सुनिश्चातिष्ठदसौ यदीये शरन्नभः श्यामरुचौ जयश्री । विदारयेन्मामपि संचलन्ती धारा शितास्येति भियेव खड् ॥१४ भयात्परिम्लानमुखानि पुंसां पश्यत्ययं शौर्यंनिधिर्न युद्धे । इतीव मत्वा पुरतो यदीयः प्रोत्सारयामास रिपून्प्रतापः ॥१५ नित्योदयो भूमिभृतां शिरःसु विन्यस्तपादः कमलैकनाथः । यस्तिग्मरश्मेः सदृशोऽपि धात्रीं प्रह्लादयामास करें रतिग्मैः ॥१६ अनूनशीलाभरणैकभूषा विश्रामभूमिः कमनीयतायाः ।
महीपतेस्तस्य बभूव देवी ख्यातान्वया या कनकादिमाला ॥१७
१४५
नवीन राजाओं के संयोग जुटाने में समर्थ था, परलोक भीरु - शत्रु जनों से डरने वाला नहीं था ॥ ११ ॥ जहाँ स्त्रियों के मुखारविन्द पर श्वासोच्छ्वास के लोभ से पड़ता हुआ मदोन्मत्त
यद्यपि हाथ के द्वारा झिड़क दिया जाता था परन्तु वह हाथ को भी लाल कमल समझ कर फिर से लौट आता था ।। १२ ।।
उस नगर की रक्षा करनेवाला कनकाभ नामक राजा था। वह राजा अत्यन्त विनीत था, प्रजापालन के द्वारा कीर्ति को प्राप्त करनेवाला था, वोर था और नीति के ज्ञाता तथा सत्पुरुषों में अग्रसर प्रधान था ।। १३ ।। शरद् ऋतु के आकाश के समान श्यामल कान्ति वाले जिसके खङ्ग पर वह प्रसिद्ध विजय लक्ष्मी इस भय से ही मानो निश्चल स्थित थी कि इसकी चारों ओर चलती हुई पैनी धारा कहीं मुझे भी विदीर्ण न कर दे ।। १४ ।। शूरता का भाण्डार स्वरूप यह राजा युद्ध में भय से मुरझाये हुए पुरुषों के मुखों को नहीं देखता है ऐसा मान कर ही मानो जिसका प्रताप शत्रुओं को सामने से दूर हटा देता था ।। १५ ।। जो राजा सूर्य के समान था क्योंकि जिस प्रकार सूर्य नित्योदय- नित्य उदय को प्राप्त होता है उसी प्रकार वह राजा भी नित्योदय था - निरन्तर अभ्युदय - वैभव को प्राप्त होता था जिस प्रकार सूर्य भूमिभूत - पर्वतों के शिखरों पर विन्यस्त पाद होता है-अपनी किरणें स्थापित करता है उसी प्रकार वह राजा भी भूमिभृत् अन्य राजाओं के मस्तकों पर विन्यस्त पाद था - पैर रखने वाला था, जिस प्रकार सूर्य कमलैकनाथ - कमलों
१. मुदालि: म०
१९
अद्वितीय स्वामी है उसी प्रकार वह राजा भी कमलैकनाथ — कमला अर्थात् लक्ष्मी का अद्वितीय स्वामी था । इस प्रकार सूर्य के समान होकर भी अतिग्म करों-अतीक्ष्ण किरणों से (पक्ष में साधारण करों से) पृथिवी को आह्लादित करता था ।। १६ ।। उस राजा की उत्कृष्ट शील रूपी आभूषण से विभूषित, सुन्दरता की विश्राम भूमि तथा प्रसिद्ध वंश वाली कनकमाला नाम की रानी थी ।। १७ ।। सिंह का जीव हरिध्वज नाम का देव, सौधर्मं स्वर्गं से अवतीर्ण होकर उन दोनों माता-पिता के हर्ष को धारण करता हुआ बहुत भारी