________________
२१६
वर्धमानचरितम्
शार्दूलविक्रीडितम् क्षेत्रं कालचरित्रलिङ्गगतयस्तीर्थावगाही मतौ
प्रत्येकप्रतिबुद्धबोधितविधी ज्ञानं तथैवान्तरम् । संख्या चाल्पबहुत्वमित्यभिहितो भेदस्त्वमीभिः परं । ___ सिद्धानां सुनयैर्नयद्वयबलात्संप्रत्यतीतस्पृशः ॥१९१
मालिनी विधिवदिति जिनेन्द्रश्चक्रनाथाय तस्मै
____ सदसि नवपदार्थान्व्यक्तमुक्त्वा व्यरंसीत् । अपि सुविहितबोधस्तस्य गोभिः समन्ता
दभिनव इव पद्मः पद्मबन्धोविरेजे ॥१९२
वसन्ततिलकम् विज्ञाय मोक्षपथमित्यथ चक्रवर्ती चक्रश्रियं तृणमिव प्रजहौ दुरन्ताम् । जानन्प्रसन्नपयसः सरसः प्रदेशं पातुं मृगोऽपि यतते मृगतृष्णिकां किम् ॥१९३ स्वं ज्यायसे सकलराज्यमरिजयाय प्रोत्या प्रदाय तनयाय बभार दीक्षाम् ।
क्षेमंकरं जिनपतिं समुपेत्य भक्त्या क्षेमाय षोडशसहस्रनृपैः स सार्द्धम् ॥१९४ ओर जाता है उसी प्रकार मुक्त जीव कर्म के बन्धन से छूटते ही ऊपर को जाता है। चौथा दृष्टान्त अग्निशिखा का है जिस प्रकार अग्निशिखा स्वभाव से ऊपर की ओर ही जाती है उसी प्रकार मुक्त जीव स्वभाव से ऊपर को ओर ही जाता है ।। १९० ॥ ___सिद्धिसुख में उत्कण्ठित सिद्ध भगवान् धर्मास्तिकाय का अभाव होने से लोकान्त के आगे नहीं जाते हैं। देदीप्यमान ज्ञान के धारक-सर्वज्ञ देव लोकान्त के आगे के क्षेत्र को धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का अभाव होने से अलोक कहते हैं ।। १९१ ।। उत्तम नयों के ज्ञाता आचार्यों ने वर्तमान और भूतकाल का स्पर्श करने वाले दो नयों के बल से सिद्धों में क्षेत्र, काल, चारित्र, लिङ्ग, गति, तीर्थ, अवगाहना, प्रत्येक बुद्ध बोधित बुद्ध, ज्ञान, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व इन बारह अनुयोगों से भेद कहा है ॥ १९२ ॥ इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् सभा में उस चक्रवर्ती के लिये विधिपूर्वक नौ पदार्थों का स्पष्ट कथन कर चुप हो गये। जिस प्रकार सूर्य की गो-किरणों से विकास को प्राप्त हुआ कमल सुशोभित होता है उसी प्रकार उन जिनेन्द्र भगवान् की गो-वाणी से ज्ञान को प्राप्त हुआ प्रियमित्र चक्रवर्ती सब ओर से सुशोभित होने लगा ॥ १९३ ॥
तदनन्तर पूर्वोक्त प्रकार से मोक्षमार्ग को जानकर चक्रवर्ती ने जिसका परिणाम अच्छा नहीं उस चक्र रूप लक्ष्मी को तृण के समान छोड़ दिया सो ठीक ही है क्योंकि स्वच्छ जल वाले सरोवर के स्थान को जानने वाला मृग भी क्या मृगतृष्णा को पीने के लिये यत्न करता है ? अर्थात् नहीं करता ॥ १९४ ॥ उसने अरिजय नामक ज्येष्ठ पुत्र के लिये प्रीतिपूर्वक अपना समस्त राज्य १. क्षेत्रकालगतिलिंगतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्पबहुवचनः साध्याः ॥९॥ त०स०अ० १०