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वर्धमानचरितम्
प्रणिपत्य मौलितट'बद्धमुकुलितकराग्रपल्लवः । भक्तिविसर परिणद्धतनुर्मुनिमित्यवोचत वचो महीपतिः ॥ १५ विरला भवन्ति मुनयोऽथ विनतजनताहिताय ये । चित्रमणिगणवितानमुचो विरलाश्च ते जगति वारिवाहिनः ॥ १६ विरलाः कियन्त इह सन्ति लसदवधिबोधलोचनाः । रत्नकिरणपरिभिन्नजलस्थलसंपदः प्रविरला जलाशयाः ॥१७ भवतः करिष्यति वचोऽद्य मम सफलमीश जीवितम् । अस्तु नियतमिदेव परैः किमुदीरितविफलमप्रियैस्तव ॥ १८ अभिधाय धीरमिति वाचमवनिपतिरादिशत्सुतम् । • वर्महरमतिविनीतमिलामवितुं तमम्बुनिधिवारिवाससम् ॥ १९ सह नन्दनः श्रियमपास्य दशशतदशक्षितीश्वरैः । प्रोष्ठिलमुनि नु जगत्प्रथितं तमभिप्रणम्य समुपाददे तपः ॥२० श्रुतवारिधि द्वयधिक पङ्क्तिविलसदमलाङ्गवीचिकम् । तूर्णमत र दुरुबुद्धिभुजा बलतोऽङ्ग बाह्य विविधभ्रमाकुलम् ॥२१ मनसा श्रुतार्थमसकृत्स विषयविमुखेन भावयन् । तप्तुमकरमुपाक्रमत क्रमतो द्विषड्विधमनुत्तमं तपः ॥२२
संगत है तथा जिससे जल की बूँदें टपक रही हैं ||१४|| जिसने मुकुलाकार हस्ताग्र रूपी पल्लवों को मुकुट तट पर लगा रक्खा था तथा जिसका शरीर भक्ति के समूह से व्याप्त था ऐसे राजा ने मुनि को नमस्कार कर इस प्रकार के वचन कहे ॥ १५ ॥
जो जन समूह के हित के लिये चेष्टा करते हैं वे मुनि विरले हैं और जो नाना प्रकार के रत्नसमूह की वर्षा करते हैं वे मेघ भी जगत् में विरले हैं ॥ १६ ॥ जिनके अवधिज्ञानरूपी नेत्र सुशोभित हो रहे हैं ऐसे मुनि इस संसार में कितने विरल हैं सो ठीक ही है क्योंकि रत्नकिरणों से जलथल की संपदा को व्याप्त करने वाले जलाशय अत्यन्त विरल ही होते हैं ।। १७ ।। हे ईश ! आपका वचन आज मेरे जीवन सफल कर देगा इतना ही कहना पर्याप्त हो, निष्फल कहे हुए आपके असुहाते अन्य वचनों से क्या प्रयोजन है ? भावार्थं - आपको अपनी प्रशंसा के वचन अच्छे नहीं लगते इसलिये उनका कहना निष्फल है इतना कहना ही पर्याप्त है कि आपके वचन सुनकर आज मेरा जीवन सफल हो गया || १८|| इस प्रकार के वचन बड़ी धीरता के साथ कहकर राजा नन्दन ने कवच को धारण करने वाले, अत्यन्त विनीत पुत्र को समुद्रान्त पृथिवी की रक्षा करने की आज्ञा दी ॥ १९ ॥ तदनन्तर दश हजार राजाओं के साथ राजलक्ष्मी का परित्याग कर नन्दन ने उन जगत्प्रसिद्ध प्रौष्ठिल मुनि को प्रणाम कर तप ग्रहण कर लिया - जिनदीक्षा लेली || २० || जिसमें द्वादशाङ्गरूपी निर्मल लहरें सुशोभित हो रहीं हैं तथा जो अङ्गबाह्यरूपी नाना भँवरों से युक्त है ऐसे श्रुतरूपी सागर को उन्होंने अपनी विशाल बुद्धिरूपी भुजा के बल से शीघ्र ही तैर लिया । भावार्थ- वे शीघ्र ही द्वादशाङ्गश्रुतज्ञान के पारगामी हो गये ॥ २१ ॥ वे विषयों से पराङ्मुख १. नम्र म० । २. परिबद्ध म० ब० ।