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वर्धमानचरितम्
जीवत्वं चाभव्यता भव्यता च प्रोक्ता भेदाः पञ्चमस्य त्रयोऽपि । षष्ठश्चान्यः सन्निपातोद्भवः षट्त्रिंशद्भेदांस्तस्य च प्राहुर्याः ॥ १३ तुल्याः सर्वे निर्वृताः संप्रणीताः सम्यक्त्वाद्यैरक्षयैः सद्गुणैस्ते । उत्तीर्याप्ता दुस्तरं ये भवाब्धिं त्रैलोक्याग्रे निष्ठितार्थाः प्रतिष्ठाम् ॥१४ धर्माधर्मौ पुद्गलाकाशकालाः सद्भिः प्रोक्ता इत्यजीवास्त्वथैते । तेषां मध्ये रूपिणः पुद्गला स्युः कालं मुक्त्वा तेऽस्तिकायाः सजीवाः ॥१५ कर्ता जीवः षट्सु नान्ये प्रदेशैर्धर्माधर्मावेकजीवेन तुल्यौ । वासंख्येयैः स्यादनन्तप्रदेशं लोकालोकव्यापकं व्योम नाम ॥ १६
धर्माधर्मौ प्राणभृत्पुद्गलानां यानस्थानोपग्रहौ लोकमात्रौ । कालो द्वेधा वर्तन लक्षणश्च स्यादाकाशं चावकाशोपकारि ॥१७ रूपस्पर्शी वर्णगन्धौ रसश्च स्थौल्यं भेदः सौक्ष्म्यसंस्थानशब्दाः । छायोद्योता वातपश्चान्धकारं बन्धोऽप्येते पुद्गलानां गुणाः स्युः ॥ १८ स्कन्धाः प्रोक्ता द्वयाद्यनन्तप्रदेशैः संयुक्तास्ते स्यादणुश्चा प्रदेशः । उत्पद्यन्ते भेदसंघातकाभ्यांः स्कन्धाः सर्वे जायतेऽणुश्च भेदात् ॥१९
के इक्कीस भेद हैं ||१२|| जीवत्व भव्यत्व और अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक भाव के भेद कहे गये हैं । इनके सिवाय छठवाँ सान्निपातिक भाव होता है जो कि इन उपर्युक्त भावों के सन्निपात-पारस्परिक सम्बन्ध से होता है । आर्य पुरुष उसके छत्तीस भेद कहते हैं || १३ || जो आदि अविनाशी समीचीन गुणों से सहित हैं तथा दुस्तर संसार सागर को पार कर तीन लोक के अग्रभाग में प्रतिष्ठा—स्थिति को प्राप्त हो चुके हैं, आत्मिक गुणों की अपेक्षा ये सब समान कहे गये हैं ॥ १४ ॥
तदनन्तर सत्पुरुषों ने धर्म अधर्म पुद्गल आकाश और काल ये पाँच अजीव पदार्थ कहे हैं । उन पाँचों के बीच पुद्गल रूपी हैं और काल को छोड़कर तथा जीव को मिलाकर पाँच अस्तिकाय हैं ।। १५ ।। इन छह द्रव्यों में एक जीव द्रव्य कर्ता है अन्य द्रव्य कर्ता नहीं हैं । धर्म, अधर्म और एक जीवद्रव्य असंख्यात प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य हैं अर्थात् इन तीनों द्रव्यों में प्रत्येकद्रव्य के असंख्यात असंख्यात प्रदेश हैं । लोक और अलोक में व्याप्त रहने वाला आकाश द्रव्य अनन्त प्रदेशों से सहित है ॥ १६ ॥ धर्म और अधर्म द्रव्य क्रमसे जीव और पुद्गलों के गमन तथा ठहरने में सहायक हैं और लोकाकाश प्रमाण हैं । वर्तनालक्षण वाला कालद्रव्य निश्चय और व्यवहार के भेद से दो प्रकार का है । आकाश द्रव्य, सब द्रव्यों के लिये अवकाश देने रूप उपकार से सहित है ॥ १७ ॥ रूप, स्पर्श, वर्ण, गन्ध, रस, स्थौल्य, भेद, सौक्ष्म्य, संस्थान, शब्द, छाया, उद्योत, आतप, अन्धकार और बन्ध ये पुद्गलों के गुण हैं । भावार्थ - इन भेदों में रूप-वर्ण, रस, गन्ध, और स्पर्श स्कन्ध और अणु की अपेक्षा दो
से पुद्गल के गुण हैं और शेष पर्याय हैं भेद हैं । जो दो से लेकर अनन्त प्रदेशों से सहित हैं वे स्कन्ध कहे गये हैं और जो अप्रदेश है
॥ १८ ॥ पुद्गलद्रव्य के
१. चासंख्येयैः ब० ।