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वर्धमानचरितम् बहुविधनिशितास्त्रपत्रमोक्षस्तरुनिवहैः प्रविदारितं तदङ्गम् । व्रणशतनिवहाचितं वशन्ति भ्रमरगणैः सह दुष्टचण्डकोटाः ॥१५ अतिपरुषरवैः श्रुति तुदन्तो दहनशिखावलिदग्धपक्ष्ममालम् । असितबलिभुजः खनन्ति तुण्डः कुलिशमयैर्नयनद्वयं तदीयम् ॥१६ विदलितवदनं 'तमुष्ट्रिकान्तेधृतविषवारिचये निवेश्य केचित् । घनशितमुखमुद्गरप्रहारैरजरदवेन पचन्ति चूर्णयन्तः ॥१७ बहुविधपरिवर्तनक्रियाभिः स्थपुटशिलासु निपात्य चूर्णयन्ति । प्रतितनु करपत्रकेण यन्त्रो महति निघाय विदारयन्ति केचित् ॥१८ धनदहनपरोतवज्रभूषाच्युतपरितप्तमयोरसं प्रपाय। विगलितरसनो विभिन्नतालु स्मरति स मांसरतेः फलानि तत्र ॥१९ सरभसपरिरम्भणेन भग्नो घनमुरसि स्तनवज्रमुद्गराः।
ज्वलदनलमयोभिरङ्गनाभिर्धवमवगच्छति तत्र कामदोषान् ॥२० पर्वत पर चढ़ता है ॥ १३ ॥ उस पर्वत पर सिंह, हाथी, अजगर, व्याघ्र तथा कङ्क आदि जन्तु आकर उसके शरीर को लुप्त करते हैं। इस तरह वह नाना प्रकार का तीव्र दुःख पाकर विश्राम के लिये गहन वृक्षों वाले वन की ओर जाता है॥१४॥ वहां, नाना प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र रूपी पत्तों को छोड़नेवाले वृक्षों के समूह से उसका शरीर विदीर्ण हो जाता है। सैकड़ों घावों के समूह से व्याप्त उसके उस शरीर को दुष्ट तीक्ष्ण कीड़े भ्रमर समूह के साथ काटते हैं ॥ १५ ॥ अत्यन्त कठोर शब्दों से कानों को पीड़ा पहुंचानेवाले काले कौए अपनी वज्रमय चोंचों के द्वारा, अग्निज्वालाओं के समूह से जिसकी विरूनियां जल गई थीं ऐसे उसके दोनों नेत्रों को खोदते हैं ॥ १६ ॥ जिसका मुख खुला हुआ है ऐसे उस नारकी को विषमय जल से भरे हुए कड़ाहे में डालकर कितने ही नारकी बहुत भारी और तीक्ष्ण मुखवाले मुद्गरों के प्रहार से चूर्ण करते हुए उसे बहुत तेज अग्नि से पकाते हैं ॥ १७ ॥ घुमाना-फिराना, उछालना आदि की क्रियाओं से उसे ऊँची-नीची शिलाओं पर पछाड़ कर कितने ही नारकी उसको चूर-चूर कर डालते हैं और कोई बहुत बड़े यन्त्र में रखकर अत्यन्त बारीक करोंत (आरा) के द्वारा उसे विदीर्ण कर देते हैं ।।१८॥ कितने हो नारकी उसे प्रचण्ड अग्नि से व्याप्त वज्रमय सांचे से गिरे हुए संतप्त लोहरस को पिलाते हैं, उससे उसकी जीभ बाहर निकल आती है तथा तालु विदीर्ण हो जाता है। इन सब क्रियाओं से वह वहाँ मांस-भक्षण की प्रीति के फल का स्मरण करता है। भावार्थ-उसे स्मरण आता है कि पूर्वभव में मैंने जो मांस खाया था उसी का यह फल है ॥ १९ ॥ स्तन के आकार के वज्रमय मुद्गरों के अग्रभाग से जिसके वक्षःस्थल पर भारी चोट दी गई है ऐसा वह नारको प्रज्वलित अग्निमय स्त्रियों के सवेग आलिङ्न से जानता है कि निश्चित ही यह मेरे काम-सम्बन्धी दोषों का फल है । भावार्थ-उस नरक में लौह की जलती हुई पुतलियों का उसे आलिङ्गन कराया जाता है तथा वक्षःस्थल पर वज्रमय मुद्गरों के अग्रभाग से चोट पहुँचायो जाती है। इन सब बातों से वह नारकी जानता है कि पूर्वभव में मैंने
१. तमूषिकान्तेधृति ब० । २. मद्यरतेः म० ।