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प्रथमः सर्गः सरोभिरुन्मीलितपननेनिरीक्ष्यमाणः कृपयाध्वखिन्नः। आहूयते पातुमिवाम्बु यस्मिन्हंसस्वनैः पान्थगणस्तृषार्तः ॥१३ तत्रास्ति पुण्यात्मकृताधिवासा पुरी सुराणां नगरीव रम्या। श्वेतातपत्राकृतिनामधेया श्वेतातपत्रस्य सदानिवासात् ॥१४ अभ्रकषान्तर्गतनीलरश्मिस्वर्भानुसंमईनशङ्कयेव। करैः सहस्रः सहितोऽपि यस्याः प्राकारमारोहति नैव भानुः ॥१५ आभाति वाताहतघूर्णमाना क्रान्ताम्बरा कादलपत्रनीला। यदम्बुखातस्य तरङ्गपङक्तिः संचारिका चाद्विपरम्परेव ॥१६ विराजिता द्वारघनप्रवेशविनिर्गमाभासितलोकलक्षैः। मा गोपुरैरुच्छ्रितकूटकोटिक्षणध्वजीभूतसिताभ्रभङ्गः ॥१७ याधिष्ठिता कोटिसहस्ररत्नैः श्रुतान्वितैः श्रावकधर्मसक्तैः । विमुक्तमायैरमदैरुदारैः स्वदारसंतोषपरैर्वणिग्भिः ॥१८ पूजाहितानविचित्ररत्नपूगप्रभाजालनिमग्नदेहा।
इन्द्रायुधं क्लुप्तपटावृतेव यत्राट्टमार्गे जनता विभाति ॥१९ ॥१२।। जिस देश के तालाबों में कमल फूल रहे हैं और हंस मधुर शब्द करते हैं उनसे ऐसा जान पड़ता है मानों तालाबों के द्वारा अपने खिले हुए कमलरूपी नेत्रों से दयापूर्वक देखा गया, मार्गसे खिन्न एवं प्यास से पीड़ित पथिकों का समूह पानी पीने के लिये ही बुलाया जा रहा हो ॥१३॥ .... उस पूर्व देश में पुण्यात्मा जनों से अधिष्ठित तथा देवों की नगरी के समान,मनोहर श्वेतपत्रा नाम की नगरी है। वह नगरी सदा श्वेत छत्रों का निवास होने से सार्थक नाम वाली है ॥१४॥ सूर्य यद्यपि हजार करों-किरणों ( पक्ष में हाथों ) से सहित है तो भी गगनचुम्बी शिखरों के बीच लगे हुए नीलमणियों की किरणरूपी राह के आक्रमण की शङ्का से ही मानों उस नगरी के कोट पर नहीं चढ़ता है ॥१५॥ वायु के आघात से चंचल, आकाश को व्याप्त करने वाली तथा केल के पत्तों के समान नीलवर्ण वाली जिसकी परिखा की तरङ्गावली चलती-फिरती• पर्वतपंक्ति के समान सुशोभित होती है ॥१६।। भीड़ की अधिकता के कारण जिसके द्वारों में प्रवेश करने और बाहर निकलने में लाखों लोग क्लेश को प्राप्त होते हैं तथा जिनकी ऊंची शिखरों पर छाये हुए सफेद मेघों के खण्ड, उत्सव के समय फहरायी हुई ध्वजाओं के समान जान पड़ते हैं ऐसे गोपुरों से जो नगरी सुशोभित है ॥१७॥ जो नगरी करोड़ों हजार रत्नों के स्वामी, शास्त्र ज्ञान से सहित, श्रावकधर्म के प्रतिपालक, मायारहित, मदरहित, उदार तथा स्वदार संतोषी वैश्यों से सहित है ॥१८॥ पूजा के लिए धारण किये हुए अमूल्य नाना रत्नसमूह की कान्ति में जिसके शरीर निमग्न हो रहे हैं ऐसी जनता, जिस नगरी के बाजार में ऐसो सुशोभित होती है मानों वह इन्द्रधनुषों से निर्मित वस्त्रों १. निवासा म०। २. तत्रास्ति राजनगरी जगति प्रसिद्धा यत्सालनीलमणिदीधितिरुद्धमार्गः।
राहुभ्रमेण विवशस्तरणिः सहस्रः पादैर्युतोऽपि न हि लङ्घयति स्म सालम् ॥१३ जीवन्धरचम्पूलम्भ १ । ३. वाताहति ब०। ४. इन्द्रायुधेः क्लुप्त म० ।