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शुभकामना 0 उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी म.
अभिनन्दनग्रन्थ साहित्य की एक ऐसी विलक्षण विधा है, जिसमें अभिनन्दनीय व्यक्ति के ऊर्जस्वल व्यक्तित्व और तेजस्वी कृतित्व तो उभर कर पाता ही है, साथ ही धर्म-दर्शन-साहित्य- . संस्कृति-इतिहास-भूगोल-ध्यान-योग व कला से सम्बन्धित मूर्धन्य मनीषियों के विचारों का निथरा हुमा स्वरूप भी आता है। उस मौलिक गहन व गम्भीर चिन्तन से सामान्य मानव ही नहीं अपितु विशिष्ट चिन्तक भी लाभान्वित होते हैं। वे इस प्रकार के उपक्रम की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं। अभिनन्दनग्रन्थ में व्यक्ति विशेष की प्रशस्ति और प्रशंसा ही नहीं होती, अपितु व्यक्ति को माध्यम बनाकर चिन्तन की ऐसी सामग्री दी जाती है, जो तरो-ताजा और कालजयी होती है।
जो व्यक्ति साहित्यिक नहीं हैं, पर साहित्यिक होने का दावा करते हैं, ऐसे साहित्यमहारथी अभिनन्दन ग्रन्थ की परम्परा को हेय बताते हैं और वे यह मानते हैं कि यह अर्थ का दुरुपयोग है। समय-समय पर वे बोलकर और लिखकर अपने विचार भी प्रस्तुत करते हैं । उनकी आलोचना-प्रत्यालोचना घटिया स्तर के अभिनन्दनग्रन्थों के लिए तो कुछ ठीक है, पर जहाँ तक उत्कृष्ट अभिनन्दनग्रन्थों का प्रश्न है, बिल्कुल ठीक नहीं है। उन्हें यह परिज्ञात होना चाहिए कि मुनि हजारीमल स्मृतिग्रन्थ, मरुधर केशरी मिश्रीमल अभिनन्दनग्रन्थ, प्राचार्य आनन्दऋषि अभिनन्दनग्रन्थ, उपाध्याय पुष्कर मुनि अभिनन्दनग्रन्थ प्रभृति कुछ ऐसे विशिष्ट अभिनन्दनग्रन्थ हैं जिनकी विद्वानों ने मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। उन ग्रन्थों में साहित्य की ऐसी उत्कृष्ट सामग्री निबद्ध की गई है, जो कभी पुरानी नहीं होती। अनेक विद्वान् अपने लेखों में उन ग्रन्थों के अवतरण बड़े हो गौरव के साथ देते हैं।
जैनसमाज में अनेक ज्योतिर्धर आचार्यों के, महामनीषी मुनिप्रवरों के अनेक अभिनन्दनग्रन्थ निकले हैं, पर विदुषी साध्वियों का अभिनन्दनग्रन्थ नहीं निकला।
महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' एक प्रतिभासम्पन्न विदुषी साध्वी हैं, जिन्होंने राजस्थान की वीर-भूमि पर जन्म लिया। वहीं पर उनका बाल्यकाल बीता। युवावस्था में उन्होंने संयम-साधना के महामार्ग पर वीरांगना की तरह कदम बढ़ाये, बिना रुके, बिना थके, प्रतिपल-प्रतिक्षण आगे बढ़ती रहीं। आगे बढ़ते रहना ही जिनके जीवन का परम लक्ष्य रहा है, जो आगे बढ़ता है, वही जीवन जन-जन के प्राकर्षण का केन्द्र बनता है।
साध्वी श्री उमरावकवरजी आगे बढ़ीं इसलिए वे वन्दनीय और अर्चनीय बन सकीं। जो जीवन के क्षेत्र में आगे बढ़ता है वही पूजनीय होता है।
महासती उमरावकंवरजी के जीवन में अनेक विशेषताएँ हैं, वे स्वभाव से सरल हैं, उनके जीवन के कण-कण में सरलता का साम्राज्य है। सरलता का साम्राज्य होने से धर्म उनके जीवन में मुखरित है। उस धर्ममूर्ति का यह अभिनन्दनग्रन्थ सभी के लिए प्रेरणा-स्रोत बनेगा । यही शुभ-कामना है।
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन/२
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