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वे कलाएँ सिखलायी। बाहुबलि को प्रभु ने हस्ति, अच, स्त्री और पुरुष के अनेक प्रकार के भेदवाले लक्षणों का ज्ञान दिया। ब्राह्मी को दाहिने हाथ से अठारह लिपियां बतलायी और सुंदरी को बायें हाथ से गणित का ज्ञान दिया। वस्तुओं का मान (माप) उन्मान (तोला, माशा आदि तोल) अवमान (गज, फुट, इंच आदि माप) और प्रतिमान (तोला, माशा आदि वजन) बताया। मणि आदि पिरोना भी सिखलाया। उनकी आज्ञा से वादी और प्रतिवादी का व्यवहार राजा, अध्यक्ष और कुलगुरु की साक्षी से होने लगा। हस्ति आदि की पूजा; धनुर्वेद तथा वैद्यक की उपासना; संग्राम, अर्थशास्त्र, वध, घात, बंध और गोष्ठी आदि की प्रवृत्ति भी उसी समय से हुई। यह मेरी माता है, यह मेरा पिता है, यह मेरा भाई है, यह मेरी बहिन है, यह मेरी स्त्री है, यह मेरी कन्या है। यह मेरा धन है, यह मेरा मकान है आदि, मेरे-तेरेकी ममता भी उसी समय से प्रारंभ हुई। प्रभु को वस्त्राभूषणों से आच्छादित देखकर लोग भी अपने को वस्त्रालंकार से सजाने लगे। प्रभु ने जिस तरह
२०. यंत्र, २१. मंत्र, २२. विष, २३. खन्य गंधवाद, २४. प्राकृत, २५. संस्कृत, २६. पैशाचिक, २७. अपभ्रंश, २८. स्मृति, २९. पुराण, ३०. विधि, ३१. सिद्धांत, ३२. तर्क, ३३. वैदक, ३४. वेद, ३५. आगम, ३६. संहिता, ३७. इतिहास, ३८.सामुद्रिक विज्ञान, ३९. आचार्य विद्याः, ४०. रसायन, ४१. कपट, ४२.विद्यानुवाद, ४३. दर्शन, ४४. संस्कार, ४५. धूत, ४६. संबलक, ४७. मणिकर्म, ४८. तरुचिकित्सा, ४९. खेचरीकला, ५०. अमरीकला, ५१. इंद्रजाल, ५२: पातालसिद्धि, ५३. पंचक, ५४. रसवती, ५५. सर्वकरणी, ५६. प्रासादलक्षण, ५७. पण, ५८. चित्रोपला, ५९. लेप, ६०. चर्मकर्म, ६१. पत्रछेद, ६२. नखछेद, ६३. पत्रपरीक्षा, ६४. वशीकरण, ६५. काष्ट घटन, ६६. देश भाषा, ६७. गारुड, ६८. योगांग, ६९. धातुकर्म, ७०. केवल विधि ७१. शकुन रुत, ७२ नामावली । इसमें दृष्टियुद्ध आदि के नाम नहीं है । (नामो में मतांतर भी है।] 1. १. हंस, २. भूत, ३. यज्ञ, ४. राक्षस, ५. उड्डि , ६. यवनी, ७. तुरकी, ८. किरी, ९. द्राविडी, १०. सेंधवी, ११. मालवी, १२. नडी, १३. नागरी, १४. लाटी, १५. पारसी, १६. अनिमित्ति, १७. चाणक्की, १८. मूलदेवी। ये अठारह लिपियां हैं।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 23 :