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अधिक बलशाली होने का खयाल जाता रहा। उन्होंने सोचा – 'दुनिया में एकसे एक अधिक बलवान हमेशा जन्मता ही रहता है। फिर बोले – भाई! तुम्हें बधाई है! तुम पर कुटुंब योग्य अभिमान कर सकता है।' ....
अरिष्टनेमि युवा हुए; परंतु यौवन का मद उनमें न था। जवानी आयी मगर जवानी की ऐयाश तबीयत उनके पास न थी। वे उदास, दुनिया के कामों में निरुत्साह, सुखसामग्रियों से बेसरोकार और एकांत सेवी थे। उनको अनेक बार राज कारोबार में लगाने की कोशिश की गयी, मगर सब बेकार हुई। शादी करने के लिए उन्हें कितना मनाया गया मगर वे राजी न हुए।
श्रीकृष्ण की अनेक रानियां थीं। एक दिन वे सभी जमा हो गयी और अरिष्टनेमि को छेड़ने लगी। एक बोली – 'अगर तुम पुरुष न होते तो ज्यादा अच्छा होता।' दूसरी ने कहा – 'अजी इनके मन लायक मिले तब तो ये शादी करें न?' तीसरी बोली – 'बेचारे यह सोचते होंगे कि, बहू लाकर उसे खिलायेंगे क्या? जो आदमी हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे वह दुनिया में किस काम का है?' चौथी ने उनकी पीठ पर मुक्का मारा और कहा - 'अजब गूंगे आदमी हो जी! कुछ तो बोलो। अगर तुम कुछ उद्योग न कर सकोगे तो भी कोई चिंता की बात नहीं है। कृष्ण के सैकड़ों रानियां हैं। वे खाती पहनती हैं तुम्हारी स्त्री को भी मिल जायगा। इसके लिए इतनी चिंता क्यों?' पांचवी ने थनक कर कहा – 'मां बाप बेटे को ब्याह ने के लिए रात दिन रोते हैं; मगर ये हैं कि इनके दिल पर कोई असर ही नहीं होता। जान पड़ता है विधाता ने इनमें कुछ कमी रख दी है।' छट्ठी ने चुटकी काटी और कहा - 'ये तो मिट्टी के पुतले हैं।'
अरिष्टनेमि हंस पड़े। इस हंसी में उल्लास था, उपेक्षा नहीं। सब चिल्ला उठी – 'मंजूर! मंजूर!' एक बोली – 'अब साफ कह दो कि शादी करूंगा।' दूसरी ने कहा – 'नहीं तो पीछे से मुकर जाओगे।' तीसरी ने ताना मारा –'हांजी वे पैंदे के आदमी हैं। इनका क्या भरोसा?' चौथी बोली - 'माता पिता की तो यह बात सुनकर वांछे खिल जायेंगी। पांचवी ने कहा - 'श्रीकृष्ण इस खुशी में हजारों लुटा देंगे।' छट्ठी ने कहा - 'अब जल्दी से
: श्री नेमिनाथ चरित्र : 160 •