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- मोक्ष (निर्वाण)
उसी दिन प्रभु ने देखा, आज मैं मुक्त होनेवाले हूं और गौतम का मुझ पर बहुत ज्यादा स्नेह है। वह स्नेह ही उनको केवलज्ञान नहीं होने देता है। इसलिए उन्होंने गौतम स्वामी को कहा – 'गौतम, पास के गांव में देवशर्मा नाम का ब्राह्मण है। वह तुम्हारे उपदेश से प्रतिबोध पायगा इसलिए तुम उसको उपदेश देने जाओ।'
गौतम स्वामी जैसी आपकी आज्ञा कह, नमस्कार कर देवशर्मा के यहां गये। उन्होंने उसे उपदेश दिया और वह प्रतिबोध पाया।
उस दिन कार्तिक मास की अमावस और पिछली रात थी। भगवान के छट्ठ का तप था। जब चंद्र स्वाति नक्षत्र में आया तब प्रभु ने पचपन अध्ययन पुण्यफलविपाक संबंधी और पचपन अध्ययन पापफलविपाक संबंधी कहे। फिर उनने छत्तीस अध्ययन वाला अप्रश्न (यानी किसी के पूछे बिना) व्याकरण कहा। जब प्रभु प्रधान नामक अध्ययन कहने लगे तब इंद्रों के आसन कांपे। वे भगवान का मोक्ष निकट जान अपने परिवार सहित प्रभु के पास आये। फिर शक्रेन्द्र ने, साश्रु नयन, हाथ जोड़ प्रभु से विनती की – 'हे नाथ; आपके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान के समय हस्तोत्तरा नक्षत्र था। इस समय उसमें भस्मक ग्रह संक्रोत होने वाला है – आनेवाला है। आपके जन्म नक्षत्र में आया हुआ यह ग्रह दो हजार बरस तक आपकी संतति को (साधु, साध्वी और श्रावक, श्राविका को) तकलीफ देगा इसलिए जब तक भस्मक ग्रह आपके सामने आ जायगा तो आपके प्रभाव से प्रभावहीन हो जायगा - अपना फल न दिखा सकेगा। जब आपके स्मरण मात्र से ही कुस्वप्न, बुरे शकुन और बुरे ग्रह श्रेष्ठ फल देने वाले हो जाते हैं, तब जहां साक्षात् आप विराजते हों वहां का तो कहना ही क्या है? इसलिए हे प्रभो, एक क्षण के लिए अपना जीवन टिकाकर रखिए कि जिससे इस दुष्ट ग्रह का उपशम हो जाय।'
प्रमु बोले – 'हे इंद्र, तुम जानते हो कि आयु बढ़ाने की शक्ति किसी में भी नहीं है फिर तुम शासन-प्रेम में मुग्ध होकर ऐसी अनहोनी बात कैसे
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 297 :