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है कि, तीन लोक में जितने तेजस्वी पदार्थ हैं वे सब एकीभूत हो गये हैं। 1
जब ये चौदह स्वप्न आते हैं और तीर्थंकर, देवलोक से च्यवकर माता के गर्भ में आते हैं तब इन्द्रों के आसन काँपते हैं । इन्द्र उपयोग देकर देखते हैं। उनको मालूम होता है कि, भगवान का जीव अमुक स्थान में गर्भ
गया है तब वे वहाँ जाते हैं और गर्भधारण करनेवाली माता को इन्द्र इस तरह स्वप्नों का फल सुनाते हैं :- [ यह कार्य प्रथम तीर्थंकर के समय में ही होता हैं ।]
"हे स्वामिनी! तुमने स्वप्न में वृषभ देखा इससे तुम्हारी कूख से मोहरूपी कीचड में फंसे हुए धर्मरूपी रथ को निकालने वाला पुत्र होगा। आपने हाथी देखा इससे आपका पुत्र महान पुरुषों का भी गुरु और भाल का स्थानरूप होगा।
सिंह देखा इससे आपका पुत्र पुरुषों में सिंह के समान धीर, निर्भय, शूरवीर और अस्खलित पराक्रमवाला होगा। .
लक्ष्मीदेवी देखी इससे आपका पुत्र तीन लोक की साम्राज्यलक्ष्मी का पति होगा।
पुष्पमाला देखी इससे आपका पुत्र पुण्य दर्शनवाला होगा: अखिल जगत् उसकी आज्ञा को माला की तरह धारण करेगा।
पूर्णचंद्र देखा इससे आपका पुत्र मनोहर और नेत्रों को आनंद देनेवाला होगा।
सूर्य देखा उससे तुम्हारा पुत्र मोहरूपी अंधकार को नष्ट कर जगत में उद्योत करने वाला होगा।
धर्मध्वज देखा इससे आपका पुत्र आपके वंश में महान प्रतिष्ठा वाला और धर्म ध्वजी होगा।
पूर्ण कुंभ देखा, इससे आपका पुत्र सर्व अतिशयों से पूर्ण यानी सर्व अतिशय युक्त होगा।
1. दिगम्बर आम्ना में 'दो मच्छ' और 'सिंहासन' ये दो स्वप्न अधिक हैं। तथा महाध्वज की जगह 'नाग भुवन' है। और सब समान हैं।
: तीर्थंकरो की माताओं के चौदह स्वप्न : 308 :