Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 329
________________ ५७-५८. महाक्रंदितना के इन्द्र हास और हासरितः ५६-६०. कुष्मांडना के इन्द्र श्वेत और महावेत; ६१-६२. पावकना के इन्द्र पवक और पवकपतिः (ज्योतिष्क देवों के इन्द्र २) :६३-६४. ज्योतिष्क देवों के इन्द्र-सूर्य और चन्द्रमा इस तरह वैमानिक के दस (संख्या १-१० तक) इन्द्र, भुवनपतिकी दस निकाय के बीस (संख्या ११-३० तक) इन्द्र, व्यंतरों के बत्तीस (संख्या ३१-६२) इन्द्र, और ज्योतिष्कों के दो (संख्या ६३-६४ तक) इंन्द्र कुल मिलाकर ६४ इन्द्र अपने लक्षावधि देवताओं सहित सुमेरु पर्वत पर भगवान का जन्मोत्सव करने आते हैं।2 __सबके आ जाने के बाद अच्युतेन्द्र जन्मोत्सव के उपकरण लाने की आभियोगिक देवताओं को आज्ञा देता है। वे ईशान कोण में जाते हैं।. वैक्रियसमुद्घातद्वारा उत्तमोत्तम पुग़लों का आकर्षण करते हैं। उनसे (१) सोने के (२) चाँदी के (३) रत्न के (४) सोने और चाँदी के (५) सोने और रत्न के (६) चाँदी और रत्न के (७) सोना चाँदी और रत्न के तथा (८) मिट्टी के इस तरह आठ प्रकार के कलश बनाते हैं। प्रत्येक प्रकार के कलश की संख्या आठ हजार होती है। कुल मिलाकर ढाई सौ अभिषेकों में इन घड़ों की संख्या एक करोड़ और साठ लाख की होती है। इनकी ऊँचाई पचीस योजन, चौड़ाई बारह योजन और इनकी नाली का मुँह एक योजन होता है। इसी प्रकार उन्होंने आठ तरह के पदार्थों से झारियाँ, दर्पण, रत्न के करंडिये, सुप्रतिष्टक (डिब्बियाँ) थाल, पात्रिकाएँ (रकाबियाँ) और पुष्पों की चंगेरियाँ भी तैयार की। इनकी संख्या कलशों ही की भाँति प्रत्येक की एक हजार और आठ थीं। लौटते समय वे मागधादि तीर्थों से मिट्टी, गंगादि महा नदियों से जल, 'क्षुद्र हिमवंत' पर्वत से सिद्धार्थ पुष्प (सरसों के फूल) श्रेष्ठ 1. भुवनपतिदेव रत्नप्रभा पृथ्वी में रहते हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी का जाडापन १८०००० योजन है। 2. ज्योतिष्कों के असंख्यात इन्द्र हैं। वे सभी आते हैं। इसलिए असंख्यात इन्द्र आकर प्रभु का जन्मोत्सव करते हैं। असंख्यात के नाम चंद्र और सूर्य दो ही हैं इसलिए दो ही गिने गये हैं। । : पंच कल्याणक : 316 :

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