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पद्मा और नंदा को लेकर राजा के पास आये। राजा ने उठकर उन्हें नमस्कार किया और कहा – 'ऋषिवर! आपने क्यों तकलीफ की? मैं ही खुद आपके पास हाजिर हो जाता।'
___ गालव ऋषि बोले - 'एक तो आप अतिथि है, दूसरे प्रजा के रक्षक हैं और तीसरे मेरी भानजी पद्मा के स्वामी होनेवाले हैं। इस तरह आप हर तरह से पूज्य हैं इसलिए तथैव पद्मा का हाथ आपको पकड़ा देने के लिए आया हूं। इसे ग्रहणकर हमें उपकृत कीजिए।' . सुवर्णबाहु ने पद्मा के साथ गांधर्व विवाह किया। रत्नावली और गालव ऋषि ने दोनों को आशीर्वाद दिया। उसी समय पद्मोत्तर नामक खेचरेंद्र का लड़का जो रत्नावली का सोतेला पुत्र था वहां आ पहुंचा। रत्नावली ने उसे सुवर्णबाहु का हाल सुनाया। पद्मोत्तर सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। वह सुवर्णबाहु के पास गया और बोला – 'हे देव! मैं आप ही के पास जा रहा था। सद्भाग्य से आपके यहीं दर्शन हो गये। कृपा करके आप वैताढ्य गिरि पर मेरी राजधानी में चलिए और मुझे उपकृत कीजिए।'
सुवर्णबाहु अपनी सेना के साथ वैताढ्य गिरि पर गये। पद्मा, रत्नावली आदि भी उनके साथ गयी। कुछ समय वहां रह, दूसरी कई विद्याधरकन्याओं से ब्याहकर सुवर्णबाहु पीछे अपनी राजधानी पुराणपुर में आये।
___ जब उन्हें राज्य करते कई बरस बीत गये, तब चक्र आदि चौदह रत्न प्राप्त हुए। उन्होंने छ: खंड पृथ्वी को जीता और वे चक्रवर्ती बनकर राज्य करने लगे।
एक बार जगन्नाथ तीर्थंकर का पुराणपुर के उद्यान में समोसरण हुआ। देवता आकाश से विमानों में बैठ बैठकर आ रहे थे। सुवर्णबाहु ने अपनी छतपर बैठे हुए उन विमानों को देखा। विमान कहां जा रहे हैं, यह जानकर उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। वे भी परिवार सहित समवसरण में गये। जब वे देशना सुनकर लौटे तो देवताओं के विमानों का विचार करने लगे। सोचते सोचते उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उन्हें अपने पूर्व भव का हाल मालूम हुआ और नाशवान जगत का विचार कर वैराग्यवान हो गये। इससे उन्होंने पुत्र को राज्य देकर, जगन्नाथ तीर्थंकर के पास दीक्षा ले ली।
: श्री पार्श्वनाथ चरित्र : 182 :