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साधु तो किसी का निमंत्रण ग्रहण नहीं करते। कारण, निमंत्रण ग्रहण करना मानो उद्दिष्ट-अपने लिये बनाया हुआ - आहार ग्रहण करना है। साधु कभी अपने लिये बनाया हुआ आहार-पानी नहीं लेते। साधु-आचार के कठोर नियम पर चलने वाले महावीर स्वामी भला कब जीर्ण सेठ के घर जानेवाले थे?
... समय पर प्रभु आहार के लिए निकले और फिरते हुए नवीन सेठ के घर पहुंचे। सेठ धनांध था। वह किसी की परवाह नहीं करता था। मगर उस समय किसी साधु को घर से लौटा देना बहुत बुरा समझा जाता था इसलिए उसने अपनी दासी को कहा – 'इसको भीख देकर तत्काल ही यहां से विदा कर!' वह लकड़े के बर्तन में उड़द के उबाले हुए बाकले ले आयी। ऐषणीयनिर्दोष आहार समझकर प्रभु ने उसे ग्रहण किया। देवताओं ने उसके घर पंच दिव्य प्रकट किये। लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। वह मिथ्याभिमानी कहने लगा कि, मैंने खुद प्रभु को परमान्न से पारणा कराया है।
जीर्णसेठ प्रभु को आहार कराने की भावना से बहुत देर तक खड़ा रहा। उसके अंतःकरण में शुभ भावनाएँ उठ रही थी। उसी समय उसने आकाश में होता हुआ दुंदुभि नाद सुना। 'अहोदांन! अहोदान!' की ध्वनि से उसकी भावना भंग हुई। उसे मालूम हुआ कि, प्रभु ने नवीन सेठ के यहां पारणा कर लिया है। उसका जी बैठ गया और वह अपने दुर्भाग्य का विचार करने लगा। 1. महावीर स्वामी के विहारकर जाने के बाद पार्श्वनाथ भगवान के एक केवली
शिष्य आये। उनसे राजा ने और नगरजनों ने आकर वंदना की और पूछा – 'हे भगवन! इस शहर में सबसे अधिक पुण्य उपार्जन करनेवाला कौन है? केवली ने उत्तर दिया – 'जीर्ण सेठ सबसे अधिक पुण्य पैदा करनेवाला है।' राजा ने पूछा – 'प्रभु को पारणा तो नवीन सेठ ने कराया है और अधिक पुण्य जीर्णसेठ ने कैसे पैदा किया?' केवली ने जवाब दिया – ‘भाव से तो जीर्ण सेठ ने ही पारणा कराया है और इसीसे उसने अच्युत देवलोक का आयु बाधा है। नवीन सेठ ने भावहीन, दासी के द्वारा आहार दिया है; परंतु तीर्थंकर को आहार दिया है इसलिए इस भव के लिए सुखदायक वसुधरादि पंच दिव्य इसके यहां प्रकट हुए हैं।' यह शुभ भावों से और शुभ भावरहित अरिहंत को पारणा कराने का फला
: श्री महावीर चरित्र : 246 :